Thursday, 31 December 2020

साल 2020 के नाम ख़त

प्रिय 2020 ,
     तुझे हमारा आखरी सलाम। हमारा सफर यहीं तक था ।आज हमारी यह दोस्ती सदा सदा के लिए खत्म हो जाएगी। जब तू आया था तो हमने बहुत अपेक्षाएं की थी तुमसे। सोचा था कुछ नई उपलब्धियां हमारे हाथ लगेगी, परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। तूने एक ही झटके में सारी उपलब्धियों को धूमिल कर दिया। तेरी इस छोटी सी जिंदगी( 1जनवरी से 31दिसंबर) में तूने हमें बहुत तड़पाया। कहीं अपनों को तूने एक दूसरे से जुदा कर दिया । सबके दिल में अपने साथी कोरोना का भय बिठा दिया। साथी भी लाया तो कोरोना जैसा लाया । यार, कम से कम दोस्त तो ढंग का लाना था। 
किस पर तूने अपना कहर नहीं बरपाया। किसानों को तूने पानी के लिए तरसा दिया था और फिर जब बरसा तो आज भी तेरे ही जीवन काल में किसान सड़कों पर खड़े हैं।
विद्यार्थियों को देख ले। कितनी अपेक्षा की थी तुमसे । सोचे थे कि कुछ नई उपलब्धियां हांसिल करेंगे ,परंतु उनके स्कूल कॉलेज भी बंद करवा दिया तूने । पढ़ाई जिसकी वह पूजा करते हैं तूने तो उससे इन की दूरियां बढ़ा दी।
बॉलीवुड के नामी सितारे छीन लिए। किसानों के लिए आज भी सर दर्द बना हुआ है। 2 जून की रोटी कमाने वाले मजदूरों को तूने एक एक रोटी के टुकड़े के लिए तरसा दिया । व्यापारियों का धंधा ठप कर दिया । क्या नहीं किया तूने ? जो लोग जैसे तैसे नौकरी करके अपना जीवन यापन कर रहे थे। ऐसे कई लोगों की तू नौकरियां खा गया। दर्द ही दर्द दिया है तूने। खिलाड़ियों के खेल छीन लिए । खेल के मैदान ,बड़ी बड़ी होटल ,बड़े बड़े मॉल, सिनेमा हॉल, रेल ,बस ,हवाई यात्रा सब बंद करवा दी।

जो मित्र एक दूसरे से मिले बिना एक पल नहीं रह सकते थे उनको तूने महीनों एक दूसरे से दूर कर दिया। कई प्रेमी प्रेमिका तेरे ही कारण विरह की आग मे तपते रहे।

परंतु इतना याद रख। तेरी इन सब करतूतों के बाद भी मानव जाति ने तुझ से हार नहीं मानी। कुछ नया करके भी दिखलाया। तेरे इस कोप से कोई भी नहीं डरा । देख ही लिया होगा तूने।
अचानक हमला जरूर किया था हमें संभलने का मौका तक नहीं दिया था । कम से कम एक बार बता तो देता कि मेरा एक दोस्त आ रहा है जो तुम्हें जान से मारने आएगा तो हम थोड़ा संभल जाते।
पर फिर भी हम समले।
मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान पर इसी तरह हमला किया था जैसे तूने हम पर किया। पर हौसला देख हमारा डरे नहीं हम तुझसे। हमने तालियां और थालिया बजाई। हमने दिए जलाए।
स्वच्छता के प्रति हम थोड़े से लापरवाह हो गए थे। परंतु अब हम लापरवाह नहीं रहे। हमने स्वच्छता को महत्व देना शुरू कर दिया।
अरे जा, तेरे जैसे कायरो से तो हम बात भी नहीं करते इसलिए हमने अपने मुंह को हमेशा ढकना शुरु कर दिया मास्क लगाकर। देखते हैं तू हमारा क्या बिगाड़ लेगा। मानव जाति के लिए खतरा बनने आया था तू?  तेरी तरह न जाने पहले कितने आए हैं और चले गए । हर बार हम उठे हैं। हर बार हमने संघर्ष किया है और हर विरोधी को हमने हराया है। हम तुम्हें भी हराएंगे ।
लॉकडाउन जिसके लिए किसी ने सोचा नहीं था। वह भी तेरे ही जीवन काल में लगा, परंतु एक अच्छा सबक उस लॉक डाउन से हमें मिला। हर चीज ऑनलाइन मंगाने लगे थे । हम भूल गए थे हमारे पड़ोस में भी कोई दुकान चलती है और उस दुकान से किसी का पेट भरता है पर तूने हमें वापस उसी जगह जाना सिखा दिया । रामू की दुकान से पिताजी अक्सर हमारे लिए मिठाई ले आते थे पर हम वहां जाना भूल गए थे । तेरे आने से हमने भी वहीं से सामान खरीदना शुरू कर दिया। तूने हमें परास्त करना चाहा तो हमने लोकल फॉर वोकल का नारा दिया। और एक दूसरे का साथ देने की ठान ली। तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाया। तेरा साथी कोरोना भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। पहले केवल सैनिक ही रक्षक समझे जाते थे परंतु अब डॉक्टर नर्स है और कहीं समाजसेवी लोगों ने डटकर मुकाबला किया और तुम्हें बता दिया कि वक्त पड़ने पर पूरी मानव जाति एक होकर किसी भी संकट का सामना कर सकती है। जो लोग हमारी ढाल बने हैं हम दिल से इनका सम्मान करते हैं। इन्होंने भी हमें बता दिया हर व्यक्ति एक सैनिक की तरह होता है जो किसी न किसी कार्य में दक्ष होता है और जरूरत पड़ने पर उसे मानव जाति के लिए कार्य करने चाहिए। दिन रात एक कर दिया डॉक्टर और नर्सों ने। समाजसेवियों ने हर कुछ व्यक्ति तक खाना पहुंचाया जिसे तू भूखे मार देना चाहता था। कितने संकट दिया तूने। प्रवासी घर छोड़ चुके थे । कोई रेल की पटरी पर कोई सड़क के किनारे रात गुजार रहा था । वह भी मार्च की धूप में । नंगे पैर  नंगे बदन फिर भी हम लड़े। हमने तुम्हारा डटकर सामना किया। आज भी हम हारे नहीं है। विजय आखिरकार हमारी हुई है। कई भामाशाह सामने आए जिन्होंने आशा की एक किरण बनकर लोगों के जीवन बचाने का कार्य किया। प्रवासियों को वापस घर मिला । 

हम भी थोड़े आधुनिक हो गए थे। गांव से शहरों की तरफ पलायन कर चुके थे। पर जब हम पर खतरा आया तो हम शहरों से वापस गांव आए। अपनों के साथ रहे। अपनापन हमें फिर से देखने को मिला। जिस अपनेपन को हम कोसो दूर छोड़ चुके थे जिस अपनेपन से हम दूर जा चुके थे और धीरे-धीरे एकांत एकाकी जीवन पसंद करने लगे थे। उसे छोड़कर हमने फिर अपनों के साथ जीना शुरु किया।

2020 तू जैसा भी था हमारे जीवन में आया था। इसलिए हम तुझसे नफरत भी नहीं कर सकते हैं परंतु अब तेरे साथ भी हम नहीं रहना चाहते। 

अब हम 2021 का तहे दिल से स्वागत करेंगे और उम्मीद करेंगे कि यह दोस्त 2020 की तरह ना निकले। यह हमें नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएं ।यह भारत को नई बुलंदियों छूने का अवसर दें । यह सभी मानव जाति एवं जीव जंतुओं में प्रेम और समर्पण की भावना भर दे।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया को सार्थक करें।
सभी को अपने-अपने लक्ष्य प्राप्त हो।
कोई इस दुनिया में दुखी ना हो ।
कोई निरोगी ना हो ।
इसी उम्मीद के साथ और नई उमंग के साथ हम 2021 का स्वागत करते हैं और अंत में तुमसे यही कहते हैं-----

तू अपने साथी कोरोना को भी वापस लेकर जाना।

और फिर कभी ना ,फिर कभी ना आना।।


Wednesday, 2 December 2020

सरदार पटेल एवं नेहरू

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।
सरदार पटेल 1920 के दशक में गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन के समय कांग्रेस में भर्ती हुए। 1936 तक उन्हे दो बार कांग्रेस के सभापति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वे पार्टी के अन्दर और जनता में बहुत लोकप्रिय थे। कांग्रेस के अन्दर उन्हे जवाहरलाल नेहरू का प्रतिद्वन्दी माना जाता था।
यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों(राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन 1950 में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।
सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है। अगर कश्मीर का निर्णय नेहरू के बजाय पटेल के हाथ मे होता तो आज भारत में कश्मीर समस्या नाम की कोई समस्या नहीं बल्कि हमारे लिए गौरव का विषय होती।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं. नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, “मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।” पं. नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं. नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई, 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, “कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।” उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि “क्या मर्जी है?” राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त, 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर, 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”यद्यपि विदेश विभाग पं. नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं. नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा “क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।” नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था “बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।

Friday, 13 November 2020

नीतीश जी का क्या होगा?

बीजेपी-जेडी(यू) गठजोड़ बिहार में सरकार बनाने को तैयार है, उधर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने एक विकट स्थिति खड़ी हो गई है- नीतीश कुमार का क्या करें?
बिहार जनादेश- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 74 सीटें जीती हैं, जो 2015 में सिर्फ 53 थीं, जबकि जनता दल (युनाइटेड) की सीटें 71 से घटकर 43 हो गई हैं- पदस्थ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कहीं ज़्यादा, नरेंद्र मोदी के लिए है. कुछ भी हो, नीतीश की छवि और लोकप्रियता दोनों को धक्का लगा है, एक ऐसा फेक्टर जिसने संभवत: बीजेपी को पीछे खींचा है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) 125 सीटें लेकर, बहुमत के 122 के आंकड़े से आगे निकल चुका है, जबकि आरजेडी-कांग्रेस-वाम महागठबंधन 110 पर रुका दिख रहा है.

बिहार में, बीजेपी अब सीनियर सहयोगी के तौर पर उभरकर सामने आई है, और उसकी पीठ पर अब नीतीश कुमार के रूप में, एक थका हुआ नेता सवार है. अब ये कुछ ही समय की बात है, जब पार्टी अपना हक़ जमाएगी और सूबे की कमान अपने हाथ में ले लेगी. नीतीश-हटाओ अभियान के भारी प्रचार के बीच, नीतीश कुमार को गद्दी पर बिठाना, लोगों के गले नहीं उतरेगा. लेकिन इससे जल्दी ही ऐसी स्थिति ज़रूर पैदा हो जाएगी, जिसमें नीतीश को किनारे कर दिया जाएगा.

नीतीश कुमार, जो मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल पूरे कर चुके हैं, मौजूदा कार्यकाल में अपनी परछाईं मात्र नज़र आते हैं- सुशासन बाबू की अपनी पिछली आकर्षक छवि से कहीं दूर, दिशाहीन और ढुलमुल. मंगलवार को जेडी(यू) प्रमुख से बात करने के बाद, हालांकि अमित शाह ने इस बात को दोहराया कि नीतीश सीएम बने रहेंगे, लेकिन नतीजों ने उनके और नरेंद्र मोदी के सामने एक दुविधा ज़रूर खड़ी कर दी है.मोदी-शाह की जोड़ी भले ही फिलहाल के लिए, समझौते के अपने रुख़ पर क़ायम रहें, लेकिन क्या वो नीतीश कुमार को उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा करने देंगे? नीतीश को बिहार सरकार का चेहरा बनाए रखना, निश्चित रूप से 2025 के विधान सभा चुनावों में, और संभवतया 2024 के लोकसभा चुनावों में भी, बीजेपी के लिए बोझ बन जाएगा.

2005 के बाद से बिहार में नीतीश का उदय, एक राजनीतिक कल्पना सी नज़र आती है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के बरसों के शासन के बाद, जिसे ‘जंगलराज’ और पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है, जेडी(यू) प्रमुख हवा के ताज़ा झोंके की तरह सामने आए- जो अपने साथ विकास की राजनीति लेकर आए. ढांचागत विकास से लेकर साइकिल चलाकर स्कूल जाती लड़कियों के नज़ारे तक, नीतीश के शासन में बिहार में एक स्पष्ट बदलाव दिखा.

बिहार के मुख्यमंत्री सुशासन और महत्वाकांक्षी विकास का पर्याय बन गए. लेकिन, उनका मौजूदा कार्यकाल बिल्कुल अलग रहा है. वो अब पहले जैसे नीतीश नहीं हैं- अब वो बिगड़ती क़ानून व्यवस्था की स्थिति, ख़राब शासन, और शराब बंदी जैसे बिना सोचे-समझे फैसलों को लेकर आलोचनाओं में फंसे हुए हैं. उनकी ख़ुद की सियासी बेवफाई ने भी, उन्हें काफी नुक़सान पहुंचाया है.

बीजेपी के साथ नीतीश की अल्टा-पल्टी, धर्मनिर्पेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, उनका बार बार ख़ेमे बदलना, और किसी स्पष्ट राजनीतिक, वैचारिक या सामाजिक सोच न होने ने, अपने पिछले रूप के मुकाबले उनकी शख़्सियत को, कहीं अधिक हल्का और छोटा कर दिया है. जेडी(यू) मुखिया का ‘ख़ामोश’ महिला वोट बैंक भले ही बरक़रार हो, लेकिन उनकी कम संख्या, उनके घटे हुए क़द और कमज़ोर पड़ गई सियासी ताक़त को ज़रूर दर्शा रही है.

बीजेपी के लिए, जो अभी भी मोदी की लोकप्रियता पर सवार है, नीतीश जितना फायदा पहुंचा रहे हैं, उतना ही घाटे का सौदा भी साबित हो रहे हैं. एनडीए को इस चुनाव में नीतीश विरोधी लहर पर पर्दा डालना था, और बीजेपी के ‘सबसे बड़े चेहरे’ नरेंद्र मोदी को, प्रोजेक्ट करने की रणनीति से बचना था. ये रणनीति काम कर गई और बीजेपी को काफी फायदा मिला है. वो सबसे बड़ी पार्टी बनने से सिर्फ एक सीट कम रह गई, जो ऐसे प्रांत में एक बड़ी बात है, जहां आरजेडी और जेडी(यू) जैसी दो क्षेत्रीय पार्टियां अंदर तक जड़ें जमाए हैं.

मोदी और शाह को जो चीज़ शायद सबसे ज़्यादा सुख देती है, वो है चुनावी जीत. और बिहार की जीत, जहां वो 2015 में हार गई थी और जिसे पीएम की शर्मिंदगी के तौर पर देखा गया था, विशेषतौर से स्वादिष्ट है. लेकिन मोदी-शाह जोड़ी की प्रवृत्ति है, कि ईवीएम का आख़िरी बटन दबने से पहले ही, वो अगले चुनावों की चिंता करने लगते हैं.वो जानते हैं कि अगर नीतीश इन चुनावों में कमज़ोर कड़ी थे, तो अगले चुनावों में यक़ीनन बोझ बन जाएंगे. बीजेपी 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जो जेडी(यू) से पांच कम थीं, और फिर भी उसने अपने सहयोगी के मुक़ाबले 31 सीटें ज़्यादा जीतीं. कहना मुश्किल है कि अगर वो नीतीश के साथ न होती, तो बीजेपी कैसा प्रदर्शन करती, लेकिन बीजेपी के प्रदर्शन में जो उछाल आया है, उससे साफ ज़ाहिर है कि मोदी का नाम काम कर गया, और शायद उनकी लोकप्रियता पूरा चुनाव अकेले दम पर जीतने के लिए काफी हो सकती थी. जेडी(यू) के नुक़सान का बीजेपी को फायदा मिला है, और इसी के साथ बीजेपी ने तय कर दिया है, कि बिहार में इस समय कौन पार्टी ज़्यादा प्रभावशाली, ज़्यादा लोकप्रिय, और चुनाव के लिए ज़्यादा तैयार है.

मोदी अब अपने दूसरे कार्यकाल में हैं, और उनका ये कार्यकाल प्रशंसापूर्ण तो बिल्कुल नहीं रहा है. लेकिन मोदी की चमक और उनकी छवि- एक ऐसे नेता की जो ईमानदारी, सुशासन के लिए खड़ा है, और जो कामदार की आवाज़ है- फीकी नहीं पड़ रही है. नरेंद्र मोदी को जो चीज़ सबसे ज़्यादा खलेगी, वो है किसी ऐसे नेता को गठबंधन की कमान सौंपना, जो थका हुआ लगता हो, पूरी तरह नियंत्रण में न हो, और जिसकी लोकप्रियता में भी भारी गिरावट आई हो. लोग अकसर मोदी को वोट देते हैं, और बदले में उनके साथ सिर्फ अनुचित व्यवहार होता है. बीजेपी जानती है कि उन्हें एक आज़माए-परखे लेकिन ठुकराए हुए नीतीश कुमार देने से, अगले चुनाव में उसके मतदाता उसे माफ नहीं करेंगे.

नीतीश कुमार ऐलान कर चुके हैं कि ये उनका आख़िरी चुनाव है, लेकिन मोदी-शाह की निगाहें, देश और अधिक से अधिक राज्यों पर, कम से कम अगले कई सालों तक राज करने पर लगी हैं. नीतीश का पांच साल का कार्यकाल, बीजेपी पर एक बोझ बन सकता है, और 2015 के विधानसभा चुनावों में, ख़ासकर युवा तेजस्वी यादव के फिर से उभरने से, उसकी उम्मीदों पर असर डाल सकता है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह अच्छी तरह जानते हैं, कि वो इस बोझ को न तो ढो सकते हैं, और न ही ढोना चाहेंगे. इसलिए अब इस जोड़ी की समस्या और मिशन यही होगा, कि नीतीश से कब और कैसे छुटकारा पाया जाए.


Tuesday, 3 November 2020

वास्को डी गामा "भारतीय इतिहास का अंधकारमय अध्याय"

क्या सचमुच भारत खोया हुआ था और जिसके बारे में दुनिया कुछ नहीं जानती थी? क्या वास्को डी गामा के पहले भारत में कोई विदेशी नहीं आया था? क्या भारत कोई ऐसी चीज है जिसे खोजा जाए? हजारों वर्ग किलोमीटर के भू भाग को वास्को डी गामा ने खोज लिया। क्या आपको यह हास्यापद नहीं लगता? यह ऐसा ही है कि आप अपने पड़ोसी के घर को खोज लें और दुनिया में इतिहास प्रसिद्ध हो जाएं।
 
सचमुच यह हद दर्जे की मूर्खता है कि भारतीय बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा है कि वास्को डी गामा ने भारत की खोज की। पढ़ाया यह जाना चाहिए कि वास्को डी गामा ने यूरोप को पहली बार भारत तक पहुंचने का समुद्री मार्ग बताया। दरअसल, पहले यूरोपी देशों के लिए भारत एक पहेली जैसा था। यूरोप अरब के देशों से मसाले, मिर्च आदि खरीदता था लेकिन अरब देश के कारोबारी उसे यह नहीं बताते थे कि यह मसाले वह पैदा किस जगह करते हैं। यूरोपीय इस बात को समझ चुके थे कि अरब कारोबारी उनसे जरूर कुछ छुपा रहे हैं।
 
ये कारोबारी अरब के उस पार पूर्वी देशों से ज्यादा परिचित नहीं थे। जहां तक सवाल भारत का है तो इसके एक ओर हिमालय की ऐसी श्रंखलाएं हैं जिसे पार करना उस दौर में असंभव ही था। भारत के दूसरी ओर तीन ओर से भारत को समुद्र ने घेर रखा था। ऐसे में यूरोप वासियों के लिए भारत पहुंचने के तीन रास्ते थे। पहला रशिया पार करके चीन होते हुए बर्मा में पहुंचकर भारत में आना जोकि अनुमान से कहीं ज्यादा लंबा ओर जोखिम भरा था। दूसरा रास्ता था अरब और ईरान को पार करके भारत पहुंचना। लेकिन यह रास्ता अरब के लोग इस्तेमाल करते थे और वे किसी अन्य को अंदर घुसने नहीं देते थे। तीसरा रास्ता समुद्र का था जिसमें चुनौती देने वाला सिर्फ समुद्र ही था। 
 
ऐसे में एक ऐसे देश के समुद्री मार्ग को खोज करने यूरोप के नाविक निकल पड़े जिसके बारे में सुना बहुत था लेकिन देखा नहीं। इन नाविकों में से एक का नाम क्रिस्टोफर कोलंबस था जो कि इटली के निवासी थे। भारत का समुद्री मार्ग खोजने निकले कोलंबस अटलांटिक महासागर में भम्रित हो गए और अमेरिका की तरफ पहुंच गए। कोलंबस को लगा कि अमेरिका ही भारत है। इसी कारण वहां के मूल निवासियों को रेड इंडियंस के नाम से जाना जाने लगा। कोलंबस की यात्रा के करीब 5 साल बाद पुर्तगाल के नाविक वास्को डा गामा जुलाई 1498 में भारत का समुद्री मार्ग खोजने निकले। वास्को डी गामा ने समुद्र के रास्ते कालीकट पहुंचकर यूरोपावासियों के लिये भारत पहुंचने का एक नया मार्ग खोज लिया था।
 
20 मई 1498 को वास्को डा गामा कालीकट तट पहुंचे और वहां के राजा से कारोबार के लिए हामी भरवा ली। कालीकट में 3 महीने रहने के बाद वास्को पुर्तगाल लौट गए। कालीकट अथवा 'कोलिकोड' केरल राज्य का एक नगर और पत्तन है। वर्ष 1499 में भारत की खोज की यह खबर फैलने लगी। वास्को डी गामा ने यूरोप के लुटेरों, शासकों और व्यापारियों के लिए एक रास्ता बना दिया था। इसके बाद भारत पर कब्जा जमाने के लिए यूरोप के कई व्यापारी और राजाओं ने कोशिश की और समय-समय पर वे आए और उन्होंने भारत के केरल राज्य के लोगों का धर्म बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुर्तगालियों की वजह से ब्रिटिश लोग भी यहां आने लगे। अंतत: 1615 ई. में यह क्षेत्र ब्रिटिश अधिकार में आया। 1698 ई. में यहां फ्रांसीसी बस्तियां बसीं। फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के युद्ध के काल में इस क्षेत्र की सत्ता बदलती रही।1503 में वास्को पुर्तगाल लौट गए और बीस साल वहां रहने के बाद वह भारत वापस चले गए। 24 मई 1524 को वास्को डी गामा की मृत्यु हो गई। लिस्बन में वास्को के नाम का एक स्मारक है, इसी जगह से उन्होंने भारत की यात्रा शुरू की थी। हालांकि संतोषप्रद विषय यह है की आजकल पढ़ाया जाता है कि भारत के समुद्री मार्ग की वास्को डी गामा ने खोज की थी। इतिहास मे इसप्रकार के विषयों पर चर्चा अत्यंत आवश्यक है ताकि इनमे आवश्यकता अनुसार संसोधन किया ज सके। 


Saturday, 17 October 2020

नवरात्रि

नवरात्रि
यह उत्सव है 
      शक्ति की आराधना का 
               शक्ति की उपासना का 
                      9 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है ।नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। 

इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति की देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। 
शक्ति की देवी मां दुर्गा के अस्त्र हैं:- शंख,चक्र,गदा, कमल,त्रिशूल, तलवार, धनुष बाण, अभय मुद्रा।

वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत,जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है।यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। 

नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ, एवं अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। परंतु चैत्र नवरात्रि और आश्विन नवरात्रि प्रमुख मनाते हैं
नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - 
 महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और 
 महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है 

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है।इन दिनों में व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है।

नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है।ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। 
           सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।
नौवा दिन नवरात्रि का अंतिम दिन है यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजन होता है। जिसमें नौ कन्याओं की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है।
            इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार के रूप में नए कपड़े प्रदान किए जाते हैं।

नौ देवियाँ है :-
शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- तप का आचरण करने वाली।
चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

इसके अतिरिक्त नौ देवियों की  यात्रा भी की जाती है जोकि दुर्गा देवी के विभिन्न स्वरूपों व अवतारों का प्रतिनिधित्व करती है:

माता वैष्णो देवी जम्मू कटरा
माता चामुण्डा देवी हिमाचल प्रदेश
माँ वज्रेश्वरी कांगड़ा वाली
माँ ज्वालामुखी देवी हिमाचल प्रदेश
माँ चिंतापुरनी उना
माँ नयना देवी बिलासपुर
माँ मनसा देवी पंचकुला
माँ कालिका देवी कालका
माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर

गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पड़ता है। 
डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद।पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा के रूप में मनाते हैं।

नवरात्रि बुराई की हार एवं सच्चाई की जीत का त्योहार है। यह शक्ति की उपासना एवं स्त्रियों के समाज में महत्वपूर्ण योगदान को समर्पित है।।

नवरात्रि की अशेष मंगकामनाएं।।

Friday, 2 October 2020

गांधी "एक आदर्श विचारधारा"

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जन्मतिथि है। आज जब करोना वायरस दुनिया भर में फैल चुका है, और वैज्ञानिक से बचने के लिए वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं।
ऐसे वक्त में हमें गांधीजी की कुछ बातों को याद करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था- हम ठोकर खा सकते हैं गिर सकते हैं लेकिन फिर उठेंगे।
1918 से लेकर 1920 तक भयंकर स्पेनिश फ्लू का दौर था उन्होंने इसके दौर को झेला है उनकी उस वक्त के कुछ बातें इस तरह से कही थी, जो हमें करोना वायरस से लड़ने के लिए भी प्रेरित करती हैं।
गांधीजी कि 7 बातें जानिए कि जब तक वैक्सीन नहीं आ जाता अपने आप को कैसे सुरक्षित रखना है।

1-आप चाहते हैं कि लोग मास्क पहने दूरी बनाए और सफाई रखें लेकिन इसकी शुरुआत आपको स्वयं खुद से करनी होगी।

2- आपको इंसानियत से भरोसा नहीं खोना है इंसानियत एक समुद्र की तरह होती है अगर समुद्र की कुछ बूंदें गंदी हो गई तो इसका मतलब यह नहीं कि समुद्र गंदा हो जाएगा।
इसका मतलब यह है कि अगर सब कुछ बुरा ही हो रहा है तो परेशान ना हो सकारात्मक रहे।क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है। अगर कहीं कुछ उथल-पुथल हो भी गई तो ऐसा नहीं कि सब कुछ खत्म हो गया।
3 - स्वास्थ्य ही असली संपत्ति है ना कि सोने और चांदी के टुकड़े ।
मतलब की संक्रमण से बचने के उपायों का स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव ना पड़ने  दें।
घर में है तो एक्सरसाइज करें अच्छा रूटीन बनाए बेहतर लाइफस्टाइल अपनाएं और मानसिक तौर पर भी स्वयं को स्वस्थ रखें।
4 - भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या कर रहे हैं।
मतलब यह कि संक्रमण किसी को भी हो सकता है लेकिन अगर सजग रहेंगे तो काफी हद तक अपने आपको उससे बचा सकते हैं आज की लापरवाही करने से आप कहीं भविष्य का नतीजा खराब भी हो सकता है।यानी कि आज  संक्रमण से सावधान रहें  तो कल सुरक्षित रहेंगे।
5 - ऐसा कुछ भी नहीं है जो चिंता की तरह शरीर को बर्बाद करें और जिसे भगवान में थोड़ा भी विश्वास है उसे किसी भी चीज के बारे में चिंता करने पर शर्मिंदा होना चाहिए।
मतलब की करोना महामारी को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। लेकिन इसके कारण मानसिक रूप से बीमार होना भी सही नहीं है। दिमागी तौर पर स्वस्थ रहें और ईश्वर पर भरोसा बनाए रखें।
6 - मैं किसी को भी अपने दिमाग में गंदे पैरों के साथ जाने नहीं दूंगा।
मतलब की कोई कितना भी इस बात की वकालत करे कि मास्क पहनने और दूरी बनाने में कुछ नहीं होता। लेकिन आप जानते हैं कि यह झूठ है ।स्वास्थ्य एजेंसियों की बात को गंभीरता से लें।
7 - कोई भी मुझे मेरी मर्जी के बिना नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
इसका मतलब यह है कि जब तक आप नहीं चाहेंगे तब तक कोई भी बगैर मास के आपके करीब आ कर बात नहीं कर सकता कितना संपर्क रखना चाहते हैं या आप ही तय करेंगे।

यह कुछ बातें उस वक्त गांधी जी ने स्पेनिश फ्लू के संदर्भ में कही थी जो कि आज करोना महामारी के ऊपर सटीक बैठती है।
गांधी जी के चरणों में शत शत वंदन 

Saturday, 26 September 2020

गुस्सा "स्वयं से संघर्ष "

 बंद दुकान में कहीं से घूमता फिरता एक सांप घुस गया।दुकान में रखी एक आरी से टकराकर सांप मामूली सा जख्मी हो गया। घबराहट में सांप ने पलट कर आरी पर पूरी ताक़त से डंक मार दिया जिस कारण उसके मुंह से खून बहना शुरू हो गया। अब की बार सांप ने अपने व्यवहार के अनुसार आरी से लिपट कर उसे जकड़ कर और दम घोंट कर मारने की पूरी कोशिश कर डाली। अब सांप अपने गुस्से की वजह से बुरी तरह घायल हो गया। दूसरेदिन जब दुकानदार ने दुकान खोली तो सांप को आरी से लिपटा मरा हुआ पाया ।जो किसी और कारण से नहीं केवल अपनी तैश और गुस्से की भेंट चढ़ गया था। 

कभी कभी गुस्से में हम दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं मगर समय बीतने के  बाद हमें पता चलता है कि हमने अपने आप का ज्यादा नुकसान किया है।


सीख - - 

अच्छी जिंदगी के लिए कभी कभी हमें, कुछ चीजों को, कुछ लोगों को, कुछ घटनाओं को,कुछ कामों को और कुछ बातों को नजर अन्दाज  करना चाहिए। अपने आपको मानसिक मजबूती के साथ नजरअन्दाज करने का आदी बनाइये।जरूरी नहीं कि हम हर एक्शन का एक रिएक्शन दिखाएं।हमारे कुछ रिएक्शन हमें केवल नुकसान ही नहीं पहुंचाएंगे बल्कि हो सकता है कि हमारी जान ही ले लें। 

सबसे बड़ी शक्ति सहन शक्ति है।


Saturday, 19 September 2020

दायित्व

एक लड़का था. अपने गाँव का सबसे होनहार और शिक्षित. पिताजी गर्व से लोगो को बताते फिरते थे कि उनका बेटा देश की रक्षा कर रहा है. अपने गाँव का पहला वर्दीधारी था वो. माँ आधे दिन इंतजार और आधे दिन उसकी बड़ाई में गुजारती थी. उसका एक बचपन का प्यार भी था जिसे उसने पुरे समाज से लड़कर अपनाया था, अग्नि को साक्षी मानकर उसके साथ जीने मरने की कसमें खाया था. लेकिन दूसरी तरफ लड़का, वो तो मातृभूमि के लिए अपना दायित्व निभा रहा था.


माँ कहती थी कि जब जब सूरज की किरणें घर की चौखट पर पड़ती है आँखे अपने बच्चें को देखने के लिए उम्मीद बाँधने लगती है. पत्नी जो कभी गुस्सा होती तो कभी प्यार जताती लेकिन मन में डर बनाये रखती थी. पिता जो बेटे के साहस और कर्तव्य पर गर्व से फुले नहीं समाते उनके माथे में भी अख़बारों के पन्नें से आई ख़बरें शिकन ले आती थी.

ऐसे ही एक रोज वो अपने घर आया था. बड़ी दिनों के बाद छुट्टियां मिली थी उसे. माँ और पत्नी के लिए साड़ियां लाया था, पिता के पसंद का वही सफ़ेद कुर्ता पैजामा भी याद था उसे. पूरा गाँव उसके स्वागत के लिए खड़ा था, आखिर उस गाँव का असली हीरो जो आया था. एक कंधे में माँ और पत्नी के प्यार और दूसरे कंधे में अपने दायित्व का बोझ उठाने के बाद भी उसके चेहरे में मुस्कान कायम थी.

छुट्टियां ख़त्म हो गयी, जाने का समय हो चुका था. माँ के आँखों के आँसू थम नहीं रहे थे, पत्नी अपनी भावनाएं छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, और पिता बेटे को समझाईश देकर अपने होने का दायित्व निभा रहे थे. बेटा जो माँ को वापस आने का अनजाना सा वादा किया जा रहा था, पत्नी को अपने होने और साथ बनाये रखने का हौसला देते हुए जा रहा था. जल्द ही एक लंबी छुट्टी लेकर वापस आने का वादा किया था उसने.

कुछ समय बाद 'वो' वापस आया. पूरा गाँव फिर से उसके स्वागत के लिए तैयार खड़ा था. लेकिन इस बार वह चलकर नहीं बल्कि लेटकर आया था. अकेले नहीं उसको लाने पूरी फ़ौज आई थी. वो लड़का जिसने अपना दायित्व निभाया था, उसकी माँ और पत्नी फिर से उसके आने पर रो रहे थे. पिता स्तब्ध खड़े थे. माहौल बिल्कुल ही शांत था. आखिर उस लड़के ने अपने लिए एक 'माँ' और चुना था. उस माँ की रक्षा को अपना दायित्व बनाया था उसने. उसी दायित्व को निभाते हुए वो चला गया.

उसके जाने से उस गाँव के बाहर कहीं कुछ नहीं बदला. बस एक माँ है जो अब दिन भर रोती है और अपने बेटे के तस्वीर को निहारती रहती है. एक पत्नी है जिस पर अपने माँ-पिता समान सास-ससुर के साथ साथ उसके शारीर में पल रहे एक और वीर योद्धा की ज़िम्मेदारी है. ना कोई मुआवजा है, ना कोई परिवार है, ना कोई सहारा है, है तो केवल दायित्व! और उस दायित्व को पूरा करने की शक्ति!



Saturday, 12 September 2020

चाणक्य "एक अमर व्यक्तित्व"

कौटिल्य अथवा 'चाणक्य' अथवा 'विष्णुगुप्त' (जन्म- अनुमानत: ईसा पूर्व 370, पंजाब; मृत्यु- अनुमानत: ईसा पूर्व 283, पाटलिपुत्र) सम्पूर्ण विश्व में एक महान राजनीतिज्ञ और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका व्यक्तिवाचक नाम 'विष्णुगुप्त', स्थानीय नाम 'चाणक्य' (चाणक्यवासी) और गोत्र नाम 'कौटिल्य' (कुटिल से) था। ये चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री थे। चाणक्य का नाम संभवत उनके गोत्र का नाम 'चणक', पिता के नाम 'चणक' अथवा स्थान का नाम 'चणक' का परिवर्तित रूप रहा होगा। चाणक्य नाम से प्रसिद्ध एक नीतिग्रन्थ 'चाणक्यनीति' भी प्रचलित है। तक्षशिला की प्रसिद्धि महान अर्थशास्त्री चाणक्य के कारण भी है, जो यहाँ प्राध्यापक थे और जिन्होंने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की नींव डाली। 'मुद्राराक्षस' में कहा गया है कि राजा नन्द ने भरे दरबार में चाणक्य को उसके उस पद से हटा दिया, जो उसे दरबार में दिया गया था। इस पर चाणक्य ने शपथ ली कि वह उसके परिवार तथा वंश को निर्मूल करके नन्द से बदला लेगा। 'बृहत्कथाकोश' के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम 'यशोमती' था।
        माना जाता है कि चाणक्य ने ईसा से 370 वर्ष पूर्व ऋषि चणक के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। वही उनके आरंभिक काल के गुरु थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चणक केवल उनके गुरु थे। चणक के ही शिष्य होने के नाते उनका नाम 'चाणक्य' पड़ा। उस समय का कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। इतिहासकारों ने प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी-अपनी धारणाएं बनाई। परंतु यह सर्वसम्मत है कि चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। तत्कालीन समय में सभी सूचनाएं व विधाएं धर्मग्रंथों के माध्यम से ही प्राप्त होती थीं। अत: धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन शिक्षा प्राप्त का एकमात्र साधन था। चाणक्य ने किशोरावस्था में ही उन ग्रंथों का सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया था।
उन्होंने 'अर्थशास्त्र' नामक एक ग्रन्थ की रचना की, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर भली भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' मौर्य काल के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप को सर्वागं देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र से धार्मिक जीवन पर भी काफ़ी प्रकाश पड़ता है। उस समय बहुत से देवताओं तथा देवियों की पूजा होती थी। न केवल बड़े देवता-देवी अपितु यक्ष, गन्धर्व, पर्वत, नदी, वृक्ष, अग्नि, पक्षी, सर्प, गाय आदि की भी पूजा होती थी। महामारी, पशुरोग, भूत, अग्नि, बाढ़, सूखा, अकाल आदि से बचने के लिए भी बहुत से धार्मिक कृत्य किये जाते थे। अनेक उत्सव, जादू टोने आदि का भी प्रचार था। अर्थशास्त्र राजनीति का उत्कृट ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती राजधर्म को प्रभावित किया। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में वार्ता (अर्थशास्त्र) तथा दण्डनीति (राज्यशासन) के साथ आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र) तथा त्रयी (वैदिक ग्रन्थों) पर भी काफ़ी बल दिया है। अर्थशास्त्र के अनुसार यह राज्य का धर्म है कि वह देखे कि प्रजा वर्णाश्रम धर्म का 'उचित पालन करती है कि नहीं।राजा को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करती यह पुस्तक चाणक्य की एक अमर कृति है।।
    

Sunday, 6 September 2020

नारी सहमति

भले ही आज हिंदुस्तान मंगल तक पहुँच गया हो लेकिन आज भी हिंदुस्तान का पुरुष प्रधान देश संकीर्णताओं से ग्रस्त है। खासकर के महिलाओं के मामलें में। हर विकसित देश विकास को प्राप्त करने के लिए महिलाओं और पुरुषों को कंधे से कन्धा मिलाकर चलने की बात करता है। लेकिन ये सुझाव शायद ही भारत जैसे देश में अपनाए जा सके। यहाँ तो प्राचीन काल से ही स्त्रियों को पुरुषों से कमतर ही समझा गया है जो आज भी विद्यमान है।

हमारे देश के संविधान को बने हुए ६७ साल हो चुके है जो सभी देशवासियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता देने का वचन तो देता है लेकिन स्त्रियों के मामले में ये संविधान केवल एक पुस्तक मात्र बन कर रह गया है। यूँ तो इसमें स्त्रियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता पुरुषों के बराबर दी गयी है परन्तु वास्तविकता क्या है इससे सभी अवगत है।

यहाँ स्त्रियाँ सिर्फ वैवाहिक जीवन का सुख भोगने का एक साधन मात्र बन कर रह गयी है। उनका बस एक ही कर्त्तव्य निर्धारित किया गया है - जीवन पर्यन्त पति और उसके परिवारजनों की सेवा सुशुश्रा करना। जन्म से ही उन्हें स्वयं निर्णय लेने के योग्य समझा ही नहीं जाता। उनका हर निर्णय उनके माता-पिता व भाई-बन्धु ही लेते आये है और बड़े होने के बाद अगर वो किसी मुद्दे पर अपने विचार भी प्रकट करना चाहे भले ही वो मुद्दा उनके खुद के जीवन से सम्बंधित ही क्यों न हो तो भी तुममें अभी समझ नहीं है या तुमने हमसे ज्यादा दुनियां नहीं देखी है इत्यादि कह कर टाल दिया जाता है। जैसे कि उनके विचारों, उनकी इच्छाओं, उनकी सहमती की कोई महत्ता ही न हो। वे यह भी समझने की कोशिश नहीं करते कि उनकी यह ज्यादती एक दिन उस स्त्री को ऐसा बना देगी की वह भविष्य में फिर कभी अपने पैरों पर नहीं खड़ी हो पायेगी, या तो वह अपनी इच्छा शक्ति को हमेशा के लिए खो देगी या फिर वो कोई ऐसा कदम उठा सकती है जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

न जाने कब तक ये पुरुष प्रधान देश नारी को अबला होने पर मजबूर करता रहेगा। शायद उसे भी इस बात का भय है कि अगर नारी को स्वतंत्र होने का अवसर मिल गया तो पुरुष फिर किस पर शासन करेगा। कौन होगा जो उसकी बातों को बिना कोई तर्क किये हुए जस का तस स्वीकार कर लेगा।

Monday, 31 August 2020

Humanity Biggest Religion

Humanity is the word we hear very often, but little did we know that the word humanity is derived from a Latin word humanitas for “human nature, kindness.” In today’s world of concrete jungle, virtual world where we all are connected by social media nothing seems to touch us, we always feel there is no humanity left. Probably we all are too busy to see through people’s pains and needs.

It may be true in few cases, in every day walk of life where we have stopped showing emotions and feelings for small things as we do not have time to pause and look around. Humanity is as small thing as a smile of gratitude; it need not be every time something very big or involve monetary rewards. We may not be giving heed to small things in everyday life but at the same time when human race is hit by some adversity our heart gives out a cry and reaches out for people who are in need.

We all try to extend our hand of kindness in different ways by charity, donations sometimes even handing out food packages, medical supplies whatever the need is and how much ever we can do. Citizens always show tremendous courage during the times of misfortunes. That does not mean that humanity waits for misfortunes and adversities to hit the humanity race. Small actions like visiting orphanage and spending some time by storytelling or handing out small things of their wants and needs is also an act of humanity. If we visit some old age homes some of them are so emotionally fragile your smile can cheer up their day and make them happy, spending some time with them and supporting them is also an act of humanity.

Tiny tiny acts of honesty, courage, fairness and selflessness lights the torch of humanity. We also must have done some acts of humanity like if we have hit a car and no one is around we leave our number so they can contact us, offering food to the needful etc. Today we all are facing global crisis not only fighting the virus, also many people are facing mental break downs and financial problems so help people around you in which ever ways you can. Humanity is not lost in the world. Human race has existed so long due to the word Humanity. Where one door closes there are many more doors open, let the humanity embrace you. Humanity is above all the religion, let the torch of humanity never extinguish.

Wednesday, 5 August 2020

It's Done "JAY SHREE RAM"

It's done. Time to sit in silence and introspect over all the great souls who sacrificed themselves for this great milestone of our history. A time to realize what's just happened was a dream for more generations we can care to count and it has come true in our lifetime. Time to pray in silence for days ahead and hope for the best for all the Hindus.

We don't need the validation or any permission of the world for expressing our love for our maryada Purushottam. This is a personal moment for each and every Hindu on this planet. A moment of inter joy and peace. A moment of peace before we embark upon our next battle, but battle is not the word for today - today we delve in inner peace and joy. 

May Prabhu bestow us with his righteousness and code of ethics. May we not falter from our path of Dharma, may we receive the strength of Prabhu Ram and Martha Sita in our characters Mata Sita and stay forever at his feet.

Jai Shri Ram

Sunday, 5 July 2020

गुरु की महत्ता

भारत अनंत काल से ऋषियों और मनीषियों की पावन भूमि रहा है जिन्होंने समूचे विश्व और भटकी मानवता का सदैव मार्ग प्रशस्त कर उन्हें सदाचार और सच्चाई की राह दिखाई है | इसकी अध्यात्मिक पृष्ठभूमि ने हर काल में गुरुओं के सम्मान की परम्परा को अक्षुण रखा है | अनादिकाल से ही आमजन से लेकर अवतारों तक के जीवन में गुरुओं का विशेष महत्व रहा है | इसी क्रम में गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने को परमावश्यक माना गया है क्योंकि माता - पिता के बाद यदि कोई व्यक्ति हमारे जीवन को संवारता है तो वह गुरु ही है | इसी लिए गुरु को ब्रह्म ,विष्णु , महेश नहीं बल्कि साक्षात परमब्रह्म की उपाधि दी गई है ------
'गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा:
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।'
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।
गुरु हमारे भीतर के अन्धकार को मिटा वहां ज्ञान के प्रकाश को भरते हैं | तभी गुरु को अंधकार से प्रकाश की और ले जाने वाला बताया गया है -- अर्थात गु यानि अन्धेरा और रु यानि प्रकाश | 
अपने गुरुओं की उपासना पर्व के रूप में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पर्व मनाया जाता है| इसे गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है | कहते हैं इसी पूर्णिमा के दिन परम श्रद्धेय वेदों के रचियता व्यास जी का भारतभूमि पर अवतरण हुआ था। उन्ही व्यास जी के नाम पर इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है | भारतवर्ष में कहीं भी कथा हो तो कथावाचक के बैठने के स्थान को व्यास पीठ कह कर सम्मान दिया जाता है | इन्ही परम पूजनीय वेदव्यास जी को प्रथम गुरु भी कहा गया क्योंकि उन्होंने ही पहली बार अपने मुखारविंद से वेदों की महिमा का बखान कर मानवता को धन्य किया था | वैसे तो हर प्रकार के ज्ञान प्रदाता को गुरु कहा गया है पर अध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु का जीवन में विशेष महत्व है,इसी लिए उन्हें सतगुरु कर कर पुकारा गया है | 
हिन्दू धर्म , सिख धर्म , मुस्लिम धर्म या फिर ईसाई सब में परम ज्ञानी पथ प्रदर्शक की महत्ता को स्वीकारा गया है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो अपनी भक्ति , अपनी रचनात्मकता सभी का श्रेय अपने गुरु को दे कर ,अपना सर्वस्व अपने गुरु के चरणों में अर्पण कर उनके प्रति अपनी परम आस्था को दर्शाया है | वे गुरु को कृपा का सागर और भगवान् का मानव रूप बताते हुए उनके चरणों में वंदना करते लिखते हैं -------
बदौं गुरु पद कंज --कृपा सिन्धु नर रूप हरि |
महा मोह तम पुंज , जासु वचन रवि कर निकर ।।
अर्थात मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥
उन्होंने अपने रचना संसार में गुरु को असीम महत्व दे कर अपनी श्रद्धा उन्हें समर्पित की है ।

कबीरदास जी भी गुरु की महिमा का बखान कर लिखते हैं ---
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
अर्थात गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार - मारकर और गढ़ - गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।

सहजो बाई कहती हैं -------
राम तजूं गुरु ना बिसारूँ ------ गुरु के सम हरिको ना निहारूं | 
अर्थात भले ही हरि को तजना पड़े पर गुरु को कभी नहीं भुलूं और गुरु के जैसे हरि को कभी ना निहारूं | 

मीरा बाई ने भी हरि धन की प्राप्ति का श्रेय अपने गुरु रविदास जी को दिया ; वे कहती हैं --------
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दई मोरे - सतगुर किरपा कर अपनायो | 
अर्थात मैंने राम के नाम का धन पा लिया है | मेरे सतगुरु ने कृपा करी है जो मुझे अपनाकर ये अनमोल वस्तु मुझे दी है |

सिख धर्म में तो गुरुओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है क्योकि गुरु नानकदेव जी ने सिख धर्म की नींव रखी तो उनके बाद अगले नौ गुरुओं ने सिख धर्म में गुरु परम्परा को कायम रख इसे आगे बढाया पर दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिक्ख गुरुओं के स्थान पर गुरबाणी युक्त पुस्तक ग्रंथ साहिब को ही गुरु का दर्जा दे उसे अपने जीवन में अपनाने की सीख दी | तब से सिख धर्म में ग्रन्थ साहिब को गुरु ग्रंथ साहिब कहकर पुकारा जाता है और इसमें संग्रहित अनेक गुरुओं की पवित्र वाणी को सुनना सभी सिख अपना सौभाग्य मानते हैं |

भगवान् श्री कृष्ण ओर श्री राम ने भी अपने जीवन में गुरुओं के सानिध्य में अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा ली | उन्होंने गुरु को अपने ह्रदय में धारण कर उनके अधीन रहने में जीवन को सार्थक माना | गुरु के चरणों की सेवा को अपना पूजा का मूल माना तथा माना कि मोक्ष का मूल गुरु की कृपा का मिलना है उसके बिना मोक्ष मिलना असम्भव है | बिना गुरु कृपा के जीव भव सागर से पार नहीं हो सकता | उन्ही की परम कृपा से जीवन में दिव्यता और चेतनता आती है | तभी तो कहा गया है -------------
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काकें लागूं पांव ,
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो मिलाय।।
अर्थात गुरु और भगवान् दोनों खड़ें हैं -- किसके पांव लगूं? मैं तो अपने गुरु पर बलिहारी जाऊँ जिसने भगवान् से मुझे मिलवा दिया है ।
संक्षेप में वेदांत अनेक हैं संदेह भी बहुत है और जानने योग्य आत्म तत्व भी अति सूक्षम है पर गुरु के बिना मानव उन्हें कभी जान नहीं पाता | वेदों ,उपनिषदों में वर्णित परमात्मा का रहस्य रूप या ब्रह्म ज्ञान हमें गुरु ही दे सकते है | आज गुरु पूर्णिमा के रूप में इन्ही गुरु जनों की उपासना और वंदना का पावन दिन है, जिसे हम उनके पवित्र ज्ञान का अनुसरण कर सार्थक कर सकते हैं |

सभी को इस पावन गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं |

Friday, 26 June 2020

परीक्षा कक्ष "एक शिक्षक की नजर से"

कितना कठिन समय है वो परीक्षा के 2 घंटे । किसी को बहुत ज्यादा लगते हैं और किसी को बहुत कम।बहुत बार परीक्षा में ड्यूटी दी है मैंने और देखा उन 2 घंटो में विद्यार्थी क्या–क्या हरकतें करते है।जिनको पेपर आता है वो तो बेचारे गर्दन भी नहीं उठा पाते,लगातार लिखते ही रहतें है।बार–बार अतिरिक्त उत्तर पुस्तिका लेते हैं।मगर कुछ ऐसे होते है, जो उनको देख देख कर ये जानने के लिए तड़प रहे होते है की इन्होंने क्या–क्या लिख दिया।
   मुझे तो उन बेचारों पर बहुत तरस आता है जो पूरा साल कक्षा में मस्ती मारते हैं और परीक्षा वाले कमरे में बड़ी बेचारी सी शक्ल बनाते है।इधर उधर झांकने की कोशिश करते हैं।उनको ऐसा करने के लिए मना कर दो तो हमे दुश्मन की भांति देख रहे होते है।2 घंटे से पहले उत्तर पुस्तिका वापिस नहीं लेने के फरमान होते है तो उनको 2 घंटे परीक्षा कक्ष में बैठाना पड़ता है और उनकी हरकतों पर ध्यान रखना पड़ता है।
       नकल करने के सभी प्रयास जब विफल हो जातें है तो वो परीक्षा कक्ष का बहुत ही बारीकी से अध्ययन करना शुरू कर देते है।पहले शुरुआत पंखे से करते है।देखते है कि कमरे में कितने पंखे है,कौन सा पंखा ज्यादा चल रहा है कौन सा पंखा अधिक आवाज़ कर रहा  है।फिर कुछ देर श्यामपट्ट को देखते है।खाली श्यामपट्ट पर कुछ ढूंढने का प्रयास करते है।फिर उनकी नजर खिड़कियों की तरफ मुड़ जाती है।लगता है जैसे खिड़कियों पर लगी लोहे की सलाखों को गिन रहे हो।बीच में बार बार निरीक्षक को आशा भरी निगाहों से देखते है और प्रयास विफल होने पर बुरी सी शक्ल बना लेते है। उनकी नजर दीवारों पर जाती है।परीक्षा कक्ष की दीवार को जब एकटक देखते हैं तो लगता है कि मन ही मन दीवार के रंग से चिढ़ रहे हो।फिर उन्हें याद आता है कि वो पेशाब करने के बहाने बाहर जा सकते है।
उनके लिए वो दो घंटे परीक्षा कक्ष में बिताना किसी सजा से कम नहीं होता।जैसे ही उत्तर पुस्तिका एकत्र करना शुरू करते सबसे पहले जमा करके परीक्षा कक्ष से बाहर भाग जाते है।अंत के आधे घंटे में कुछ पढ़ाकू विद्यार्थी ही कक्ष रह जाते है जो पूरे दो - ढाई घंटे लिखते रहते है।उनमें से एक आध ऐसा होता जिसको ये समय भी थोड़ा पड़ जाता है।उनकी कलम अंत में सारे ट्रैफिक सिग्नल तोड़कर भागती प्रतीत होती है मगर ज्यादा देर तक नहीं चल पाती क्योंकि हमे उनकी पुस्तिका छीननी पड़ती है।
          परीक्षा के बाद तो हर विद्यार्थी ऐसा लगता है,जैसे कोई मजदूर बहुत सारा बोझ कंधे से उतारकर नीचे रख देता है और फिर एक गहरी चैन भरी सांस लेता है।फिर एक अजीब सा सुकून चेहरे पर लेकर परीक्षा कक्ष से बाहर चला जाता है।

Friday, 12 June 2020

Be- POSITIVE

उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी, तो कभी गम. दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा, जिसे किसी भी तरह की परेशानी न हो. किसी को आर्थिक, किसी को मानसिक, तो कोई शारीरिक परेशानी से जूझ रहा है. जीवन में कभी ऐसे भी क्षण आते हैं, जब लगता है कि अपना सौ प्रतिशत देने के बावजूद रिजल्ट अपेक्षा के अनुरूप नहीं है. बार-बार कोशिश करने के बाद भी परिणाम उत्साहजनक नहीं है.

ये किसी भी इंसान के जीवन का सबसे कठिन समय होता है, जब वह न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी टूट जाता है.

सवाल यही है कि ऐसे हालात में हम क्या करें? हाल में आपने ये खबर सुनी होगी कि बीसीसीआइ ने महेंद्र सिंह धौनी को अपने कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से बाहर कर दिया है. उसके बाद ये कयास लगने लगे कि बीसीसीआइ ने धौनी को संन्यास लेने के लिए इशारा कर दिया है.

उसके अगले ही दिन ये खबर आयी कि धौनी ने रांची के जेएससीए स्टेडियम में प्रैक्टिस शुरू कर दी है. आपको जुलाई 2019 में भारत और न्यूजीलैंड के बीच का सेमीफाइनल मैच याद होगा, जब धौनी के आउट होते ही भारत के वर्ल्डकप जीतने का सपना टूट गया और धौनी जब आंखों में आंसू लिए बाहर जाने लगे, तो पूरा हिंदुस्तान रो पड़ा. हार की टीस इसलिए भी बढ़ गयी थी क्योंकि हर क्रिकेट प्रेमी ये मानकर चल रहा था कि धौनी का ये अंतिम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच है और धौनी संन्यास की घोषणा कर देंगे, लेकिन धौनी ने संन्यास की घोषणा नहीं की और अगले महीने कश्मीर में आर्मी कैंप में होनेवाली ट्रेनिंग में शामिल हो गये.वर्ल्ड कप को गुजरे लगभग एक वर्ष हो गये हैं, लेकिन आज भी यक्ष प्रश्न यही है कि धौनी संन्यास की घोषणा कब करेंगे? उनके दिमाग में आखिर चल क्या रहा है?

क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 के पहले के समय को याद करें. क्रिकेट के अधिकतर समीक्षक कह रहे थे, चूंकि अब महेंद्र सिंह धोनी पहले की तरह मैच फिनिश नहीं कर पा रहे हैं इसलिए उन्हें संन्यास लेकर ऋषभ पंत, रिद्धिमान साहा, ईशान किशन और संजू सैमसंग जैसे नवोदित प्लेयर्स को मौका देना चाहिए, लेकिन अब छह महीने बाद जब से धौनी ने अस्थायी रूप से खेल से विराम लिया है, हर गुजरे मैच के बाद लोगों को धौनी की याद आ रही है. मैच फिनिश करने, डीआरएस लेने में कोई चूक हो रही हो या विकेटकीपिंग में कोई कैच छूट रहा हो. हर बार समीक्षक और क्रिकेट प्रेमी जो उनके संन्यास ले लेने की बात करते थे, आज कह रहे हैं कि अभी के खिलाड़ियों से बेहतर तो अपना धौनी ही था.

लगता है धौनी की रणनीति काम कर रही है. जब वक्त उनके हिसाब से नहीं था. उन्होंने शांत रहकर बेहतर वक्त का इंतजार किया.

बात सिर्फ धौनी की नहीं है. कोई आम हो या खास. अगर वक्त आपके हिसाब से नहीं हो, तो बेहतर होगा कि आप शांतचित्त रहें. आत्ममंथन करें और हालात बेहतर होने का इंतजार करें.

कहने का आशय ये है कि वक्त आपके अनुरूप न हो या हवा आपके विपरीत चल रही हो, तो उससे टकराने के बजाय शांत बैठना ज्यादा समझदारी है. समुद्र की लहरें जब सामने आती हैं, तो सीना सामने करने से बेहतर है झुक जाना या लहरों के साथ आगे बढ़ जाना.

Thursday, 28 May 2020

ग़रीबी : एक अभिशाप

गरीबी मनुष्य के जीवन में एक मिट्टी की मूर्ति के समान स्थायीत्व और चुपचाप सबकुछ देखकर सहने के लिए मजबूर करती है शायद उसकी यही मजबूरी उसके जिन्दगी के सफर में एक कोढ़ पैदा कर देती है।ईश्वर ने भी मनुष्य को अजीबोगरीब बना दिया है। किसी को ऐसा बनाया है कि वो खाते -खाते मर जाता है कोई खाये बिना मर जाता है। वास्तव में जब कोई गरीबी की मार झेलता है न जाने उसे कैसी -कैसी यातनाएँ झेलनी पड़ती होगी।उसके उपर क्या गुजरती होगी।वो अच्छा कार्य करने के पश्चात् भी किसी के सामने उसमें कहने की हिम्मत नहीं होती उसके अन्दर बहुत सी बातें आती है लेकिन समाज ने ऐसा उसे एक दर्जा प्रदान कर दिया है वो उसी के दायरे में रहकर अपने हर काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है।इतना ही नहीं इन गरीबों के प्रति सरकार भी अव्यवहार करती है इनके लिए अलग वर्ग बांट कर दिया गया है। गरीबों के लिए गरीब भोजन गरीबों के लिये गरीब आवास गरीबों के लिए ट्रेनों में गरीब ट्रेन (सामान्य बोगी) बना दी गई।उस ट्रेन में एक तरफ लोगों को बैठने के लिये जगह नहीं मिलता है दूसरी तरफ़ लोग आराम से पैर फैला कर मीठे सपने बुनते सफर करते हैं।एक तरफ लोगों की समस्या के वजह से हालत खराब हो रही है दूसरी तरफ सपनों की नदी में तैरते हुए आनंद के साथ सफर कर रहे हैं।जिन्दगी का सफर दोनों काट रहे हैं एक तरफ आनंददायक है तो एक तरफ दुखदायक है।क्या ईश्वर की लीला है जिन्होंने मनुष्य को बनाते समय अपने पर भी गर्व किया होगा कि मैंने भी एक अच्छे इंसान को बनाया है। लेकिन वो बनाते समय यह नही सोचे होगें कि ये लोग इतनी बडी हैवानियत को अपने अन्दर पाल लेंगे। फिर लौटते है उस गरीब की तरफ जो एक दाना के लिए किसी चौराहे पर सुबह से शाम तक पेट की छुदा को शान्त करने के लिए एक मनुष्य ही मनुष्य के चेहरे को एक टक देखते रहता है उसकी याचना भरी आखों के सामने कई तरह के चेहरे शाम तक नजर आते है। फिर भी उसके पेट की भुख समाप्त नहीं हो पाती है। और उसी रास्ते के बगल में आसमान रूपी छत के नीचे अपनी नींद को पुरा करना चाहता है पर भुख के मारे उसकी नींद पुरी नही होती है और स्वास्थ्य खराब हो जाते है उसके जिन्दगी का सफर पुरा नही हो पाता है ।उस गरीब के रह जाते हैं अधुरे सपने अधूरे ख्वाब और रह जाती है अधूरी जिन्दगी। मुझे लगता है ऐसे इनका कोई अस्तित्व नहीं है आज के समय में,हाँ इनका एक अस्तित्व है जब किसी को इनकी जरूरत पड़ती है तो चले आते हैं इनका शोषण करने के लिए और अपना स्वार्थ सिद्धि पुरा कर लेते हैं। शायद यही एक गरीब का हाल होता है। आज के समय में एक गरीब होना सबसे बड़ा गुनाह है। हे ईश्वर सबको सबकुछ देना लेकिन गरीबी मत देना।

Friday, 8 May 2020

टाइम्स ऑफ लॉकडाउन "मेरी दिनचर्या"

कोविड 19 के चलते पूरी दुनिया में लॉक डाउन हो गया है।पहली बार महसूस हुआ कि दुनिया बहुत छोटी है।
    आजकल तो दिनचर्या काफी बदल गयी है।भागदौड़ और हड़बड़ी का स्थान ठहराव और संयम ने ले लिया है।सुबह जल्दी उठने की आदत तो पहले से ही थी पर वह समय पढ़ने - पढ़ाने और अपने स्कूल की और दौड़ने में निकल जाता था।
सुबह उठ कर गंगा किनारे पर जा कर वाक करना और  कोयल की मधुर तान सुनना मन को एक अलग ही जहाँ में ले जाता है।चिड़ियों का कलरव, कबूतरों का गुटरगूँ इतने करीब  सांस रोक कर सुनना बहुत सुहाता है।
      इस समय नारंगी रंग का सूरज जब अपनी रश्मियों के साथ जब सतरंगी छटा बिखराता है तो अपने तन पर उन ठंडी सी धूप की छुवन का अहसास मन को ही नहीं तन को भी ऊर्जा से भर भर जाता है।
          इस बार तो अढ़उल के फूल खूब फूले हैं।पेड़ लाल लाल फूलों से ढके हुए हैं बीच बीच में हरे पत्ते नज़र आते हैं।हो सकता है हर बार अढ़उल खिलते हों पर कभी नज़र नहीं पड़ी उनके सौंदर्य पर। पता है अढ़उल का फूल ऊपर से चटक लाल होता है और अंदर से पीला।उसे देख कर न जाने क्यों मुझे उसमें अपनी परछाई दिख गयी। मेरी ज़िंदगी देखने में बेहद खुशनुमा दिखती है पर अंदर से कितनी उदास है यह तो मुझे अभी पता चला जब मैंने अपने आप को कई सवालों का जवाब देने का प्रयास किया।
      घर के सभी काम मिलजुल कर करने के बाद मैं ऑनलाइन स्कूल और क्लासेज में जुट जाता हूं। यह कहना तो भूल ही गया कि हर रोज़ स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना बनाने की ज़िम्मेदारी मां ने संभाल रखी है।हम सब के घर रहने से वो भी खुश रहती हैं।
   दिन को एक घंटे की पूरी सुकून नींद रिचार्ज कर देती है शाम के लिए।शाम को सब का साथ में बैठ कर अंताक्षरी , कार्ड्स या चैस खेलना सब को एक साथ बांधे रखता है।शाम की आरती और आधे घंटे का मैडिटेशन आत्मा और परमात्मा दोनों से बॉन्ड बना देता है।
         सुनो आसमान नीले रंग का होता है और रात को ऐसा दिखता है जैसे आसमानी रंग की साड़ी पर सुनहरी रंग के सलमें सितारे कढ़े हुए हों।देर तक उनको देखते रहने में बहुत आनंद आता है।
  वीकेंड्स पर सब फैमिली ग्रुप्स और फ्रेंड ग्रुप्स पर वीडियो चैट करने लगे हैं। मेरे साथ भागलपुर में हॉस्टल में रहने वाले दोस्त फिर से ज़ूम की मदद से एक साथ बात कर अपनी ज़िंदगी के किस्से और हिस्से बांट रहे हैं और अपने भविष्य के सवालों का उत्तर खोज रहे हैं।
        हमें तो सब कुछ अच्छा लग रहा है अपनों के और खुद अपने आप के इतने करीब कभी नहीं थे।इतना तो खुद को भी हम नहीं जानते थे जितना अब जाने।
  उन सब के लिये अफसोस होता है जो covid19 की चपेट में आ कर अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठे।उनके परिवार को ईश्वर शक्ति दे कि वो यह सहन कर सके।
      सभी घर में रहें,सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें।योगा करते रहें और इम्युनिटी बनाए रखें।

Sunday, 3 May 2020

जीवन का दर्द

वो एक दिन मेरी डायरी पढ़ने बैठी
पहला ही पन्ना पढ़ा और झटके में
पांच, छह पन्ने पलट दिए

शायद वो दर्द को पीछे छोड़ देना चाहती थी

लेकिन उसे अंदाज़ा न था
कि वह किनारा छोड़
अंदर सागर की तरफ जा रही है !!

Tuesday, 28 April 2020

राष्ट्रीय एकता

भारत एक विशाल भूमि का प्रदेश है जिसमें विभिन्न समुदायों, संस्कृतियों और जातियों के लोग रहते हैं। यहाँ सभी प्रांतों के लोगों का एकसाथ रहना लगभग असंभव सा लगता है और इन धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण ही हमारा देश अतीत में अंग्रेजों का गुलाम बन गया था। आज जब हमारा देश स्वतंत्र है तो हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बाहरी खतरों और आंतरिक असंतोष से इसकी अखंडता और सम्मान को संरक्षित करने की है।

राष्ट्रीय एकता न केवल एक मजबूत देश के गठन में मदद करती है बल्कि अपने लोगों के विकास को भी प्रोत्साहित करती है। भारत में 19 नवंबर से 25 नवंबर तक आम जनता के हित में जागरूकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय एकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

राष्ट्रीय एकता के विचार ने सामाजिक और धार्मिक मतभेदों को नष्ट करने का कार्य भी किया है। इसलिए यदि हमारे देश के लोग एकता के साथ खड़े रहे तो कई सामाजिक मुद्दों को समाप्त किया जा सकता है। विभिन्न विश्वासों को मानने वाले और विभिन्न समुदायों के लोग जो दूसरों के धर्मों से अपने धर्म को अच्छा बताते थे धीरे-धीरे एकता के महत्व को महसूस कर रहे हैं और देश की एकता और सम्मान के समर्थन में खड़े हो रहे हैं।

राष्ट्रीय एकता ने समानता के अदृश्य धागे के गठन की ओर अग्रसर किया है जो देश के विभिन्न हिस्सों में सामंजस्य स्थापित करती है। यह निश्चित रूप से देश की ताकत को बढ़ावा देता है। स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान भी हमारे देश के लोग अन्यायपूर्ण विदेशी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक साथ खड़े हो गये थे।

अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि हम भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए। राष्ट्रीय एकता पर इमानुएल क्लेवर द्वारा कहा गया एक प्रसिद्ध वाक्य इस प्रकार है "विभाजन से अधिक एकता में शक्ति है"। इसलिए हमें सभी सामाजिक, भाषाई और धार्मिक मतभेदों के बावजूद हमेशा एकजुट रहना चाहिए।

भ्रष्टाचार

हमारे देश के गठन के बाद से सब कुछ राजनीतिक नेताओं और सरकारी क्षेत्रों में शासन करने वालों द्वारा तय होता है। जाहिर है हम एक लोकतांत्रिक देश हैं लेकिन जो भी सत्ता में आ जाता है वह उस शक्ति का दुरुपयोग करके अपने निजी लाभ के लिए धन और संपत्ति हासिल करने की कोशिश करता है। आम लोग खुद को हमेशा अभाव की स्थिति में पाते हैं।

हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच का अंतर इतना बढ़ गया है कि यह हमारे देश में भ्रष्टाचार का एक स्पष्ट उदाहरण है जहां समाज के एक वर्ग के पास समृद्धि और धन है और वहीँ दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी रेखा से नीचे रहती है। यही कारण है कि कुछ देशों की अर्थव्यवस्था को गिरावट का सामना करना पड़ रहा है.

यदि हम अपने देश के जिम्मेदार नागरिक हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि यह भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्र के आर्थिक विकास में खाई है और हमारे समाज में अपराध को जन्म दे रहा है। यदि हमारे समाज का बहुसंख्यक वर्ग अभाव और गरीबी में रहना जारी रखेगा और किसी भी रोजगार का अवसर नहीं मिलेगा तो अपराध दर कभी कम नहीं होगी। गरीबी लोगों की नैतिकता और मूल्यों को नष्ट कर देगी जिससे लोगों के बीच नफरत में वृद्धि होगी। हमारे इस मुद्दे को हल करने और हमारे देश के संपूर्ण विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु संघर्ष करने का यह सही समय है।

इस तथ्य की परवाह किए बिना कि असामाजिक तत्व हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था के भीतर हैं या बाहर हैं संसद को इनके खिलाफ सख्त कानूनों को पारित करना चाहिए। हमारे देश में सभी के लिए एक समान व्यवहार होना चाहिए।

यदि कोई भ्रष्टाचार के पीछे कारणों का विचार और मूल्यांकन करता है तो यह अनगिनत हो सकते हैं। हालांकि भ्रष्टाचार के रोग फैलने के लिए जिम्मेदार कारणों में मेरा मानना ​​है कि सरकार के नियमों और कानूनों के प्रति लोगों का गैर-गंभीर रुख तथा समाज में बुराई फ़ैलाने वालों के प्रति सरकार का सहारा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों को भ्रष्टाचार का अंत करने के लिए नियोजित किया जाता है वे स्वयं अपराधी बन जाते हैं और इसे प्रोत्साहित करते हैं।
भ्रष्टाचार के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण नौकरशाही और सरकारी कार्यों की पारदर्शिता है। विशेष रूप से सरकार के अधीन चलाए जाने वाले संस्थान गंभीर मुद्दों के तहत नैतिक अस्पष्टता दिखाते हैं। जो धन गरीब लोगों के उत्थान के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए वह खुद राजनीतिज्ञों ने अपने इस्तेमाल के लिए रख लिया। इससे भी बदतर जो लोग समृद्ध नहीं हैं और सत्ता में बैठे लोगों को रिश्वत नहीं दे सकते वे अपना काम नहीं करवा पा रहे हैं इसलिए उनकी काम की फ़ाइल कार्रवाई के बजाए धूल फांक रही है। जाहिर है किसी भी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में गिरावट तब-तब आएगी जब-जब भ्रष्ट अधिकारियों ने देश पर शासन किया है।

स्थिति बहुत तनावग्रस्त हो गई है और जब तक सामान्य जनता कोई कदम ना उठाए और सतर्क नहीं हो जाती तब तक भ्रष्टाचार को हमारे समाज से उखाड़ा नहीं जा सकता।

देशभक्ति

हर गणतंत्र दिवस पर बचपन का एक किस्सा याद आता है. मेरी उम्र लगभग 5 या 6 साल की थी. पहली क्लास में एडमिशन हुए कुछ ही दिन हुए थे और साफ साफ बोलना बस सीखा ही था. गणतंत्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु शिक्षा मंदिर में एक कार्यक्रम चल रहा था जिसमें बच्चे जाकर कुछ कुछ सुना रहे थे और उन्हे इनाम मिल रहा था. मैं ये सब देख रहा था. मां ने मुझे कहा कि मैं भी वहां जाऊँ और जाकर कुछ सुनाऊँ. मैं ने पहले तो आनाकानी की लेकिन फिर इनाम के लालच में जाने के लिए तैयार हो गया. माँ ने मुझे उस दिन मेरी ज़िन्दगी की पहली कविता सिखाई. मैं वहां पहुंच गया. प्रबंधक मेरे पड़ोसी ही थे. कुछ देर में मेरा नंबर आ गया और मैं मंच पर था. सामने ढेरों लोग बैठे हुए थे. मैंने अपने हाथों पर कविता लिखी हुई थी, लेकिन हाथों को देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन फिर मुझे इनाम का ख्याल आया और मैंने कविता शुरू की. 
"माँ मुझको बंदूक दिल दो, 
मैं भी लड़ने जाऊंगा, 
सरहद पर बन कर फौज़ी दुश्मन को मार भगाउँगा"
इतना कहने के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से सारा मैदान गूंज गया और मैं वहां सन्न सा खड़ा रह गया. आगे कविता और बाकी थी लेकिन मेरी आँखे डबडबाई और कुछ मैं नहीं कह पाया. उस दिन इनाम में पेंसिल मिली. 
उस दिन को याद करके आज भी मन रोमांच से भर जाता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं. शब्द आज बदल गए हैं लेकिन जज्बा वही है. 
"माँ मुझको तू कलम दिला दे,
देश में शांति लाऊंगा, 
सरहद पर खड़े वीरों की,
जयचंदो से जान बचाउँगा"  
जय हिंद जय भारत

शिक्षा का उद्देश्य

विद्यार्थी-जीवन की एक घटना भुलाए नहीं भूलती। हम दसवीं कक्षा में थे। हिंदी के अध्यापक ने शिक्षा के उद्देश्य पर एक लंबा-चौड़ा भाषण दिया। जिला विद्यालय निरीक्षक हमारे कॉलेज का निरीक्षण करनेवाले थे। गुरुजी ने घोषणा की कि कक्षा में जो छात्र शिक्षा के उद्देश्य पर सबसे अच्छा भाषण तैयार करके लाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। सभी छात्र गुरुजी द्वारा बताए जा रहे शिक्षा के उद्देश्यों को नोट करने में व्यस्त थे। गुरुजी कह रहे थे कि शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य बच्चों को एक अच्छा शहरी, भविष्य का एक अच्छा इनसान बनाना है। उन्हें किस तरह समाज और व्यक्तिगत जीवन के बीच नैतिक आधार पर संतुलन स्थापित करना चाहिए तथा हर प्रकार के लोभ, लालच, क्रोध और घृणा की भावनाओं को त्यागकर अन्य लोगों की निस्स्वार्थ सेवा करनी चाहिए, बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार देना चाहिए।
गुरुजी का भाषण समाप्त हुआ तो एक छात्र ने अपना हाथ उठाया। सभी को लगा, जैसे कक्षा भर में अकेला छात्र यही है, जिसने गुरुजी द्वारा दिए गए उपदेश को हाथोहाथ कंठस्थ कर लिया है। गुरुजी ने उसकी ओर देखकर संकेत किया—
‘हाँ बेटे! तुम समझे, शिक्षा का उद्देश्य?’ छात्र की ओर से उत्तर आया—‘यस सर!’ ‘बोलो,’—गुरुजी ने आदेश दिया। छात्र बोला, ‘तनख्वाह।’ 
   उस बालक का यह जवाब पूरी शिक्षा व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है जिन्होंने शिक्षा का अर्थ केवल धनोपार्जन कर दिया है। जबतक लोग केवल नौकरी करने के लिए पढ़ेंगे समाज में नौकर पैदा होंगे अन्य कोई नहीं।।

Monday, 27 April 2020

कोरोना के बाद की दुनिया

कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रही दुनिया के बारे में अगर इस वक्त कुछ अनिश्चय कायम हैं तो ऐसी कई नई संभावनाएं भी पैदा हो गई हैं, जिनसे विश्व में कई बदलावों की उम्मीद की जा रही है। अनिश्चय इसका है कि आखिर कैसे यह बीमारी काबू में आएगी और इसके कारण उलट-पुलट व्यवस्थाएं कितने दिनों तक इसी तरह अराजकता की शिकार रहेंगी। संभावनाओं की तरफ गौर करें तो प्रतीत होता है कि इस संक्रमण से संसार कई ऐसे सबक लेगा जो एक बेहतर दुनिया बनाने का भरोसा जगाएंगे और मानवता के वास्तविक प्रतिमान हमारे सामने रखेंगे।
मानव व्यवहार और दिनचर्या : महामारियों के इतिहास को देखने से पता चलता है कि जब कोई रोग दुनिया के बड़े फलक पर फैलता है तो वह न केवल लोगों के रहन-सहन को पूरी तरह बदल देता है, बल्कि व्यापार, राजनीति और अर्थव्यवस्थाओं के संचालन के तौर- तरीकों पर भी नाटकीय असर डालता है। कोविड-19 नामक बीमारी यानी कोरोना वायरस के संक्रमण से जो पहली चीज बदलने वाली है, वह सामान्य मानव व्यवहार और हमारी दिनचर्या है। आज यह एक सामान्य मानव व्यवहार है कि लोग अपने घर-परिवार, मित्रों, सहयोगियों और सहयात्रियों के साथ ऐसी दूरी न बरतें, जैसे वे दूसरे ग्रह से आए हों। यानी जरूरत पड़ने पर उनसे हाथ मिलाएं, कोई अवसर हो तो उनसे गले मिलें। सामूहिक आयोजनों में, जैसे जन्मदिवस या प्रमोशन की पार्टी, शादी-ब्याह और अन्य सार्वजनिक समारोहों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें।
कोरोना के आक्रामक संक्रमण के मद्देनजर यह जरूरी हो गया है कि जहां तक संभव हो, कथित तौर पर इन सभी सामान्य दिनचर्याओं में तुरंत आवश्यक परिवर्तन लाया जाए। अब तो ऐसी सलाहें भी दी जा रही हैं कि यदि सार्वजनिक स्थानों पर आपका व्यवहार मित्रवत न होकर थोड़ा शत्रुतापूर्ण भी है तो इस संक्रमणकालीन दौर में उसे एक सामान्य व्यवहार माना जाए। यही नहीं, संक्रामक रोग से पीड़ित रोगी से दूरी बनाने के मामले में अब यदि कोई कटुतापूर्ण व्यवहार करता दिखे तो आश्चर्य नहीं होगा। कुछ घटनाओं के कारण अभी ही ऐसे हालात बन रहे हैं कि विदेश से लौटे अपने ही पड़ोसियों और विमान सेवाओं के संचालन में लगे कर्मचारियों आदि को लेकर ऐसा सख्त रुख लोग दर्शा रहे हैं, मानो उन्होंने ऐसा करके कोई गलती कर दी है। इसी तरह मुंह पर मास्क पहनने, समयसमय पर हाथ धोने की आम हिदायतें तो हालांकि पहले भी कई बार दी जा चुकी हैं, लेकिन कोरोना के बाद की दुनिया में इन सावधानियों पर लोग ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। देखा गया है कि सामान्य खांसी-जुकाम की अनदेखी के कारण कई बार बीमारियां अराजक रूप ले लेती हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। अब मुमकिन है कि इस मामले में कोई सुधार हो।
शहरीकरण भी निशाने पर : उद्योगीकरण के बाद की दुनिया का सबसे ज्यादा फोकस इस बात पर रहा है कि कैसे लोगों के रहन-सहन का स्तर बढ़ाया जाए और उन सुख-सुविधाओं का प्रबंध किया जाए जिनसे प्रकृति की मार से परेशान रहने वाला इंसान अपने घरों में सुविधाजनक ढंग से रह सके। इन ज्यादातर प्रबंधों ने मनुष्य को प्रकृति से दूर कर दिया। इसी से वह शहरीकरण उपजा जिसकी बदौलत आज दुनिया की आधी से ज्यादा जनसंख्या शहरों में आबाद हो गई। शहरों में निवास की अपनी शर्तें हैं। यहां रहने को जमीन की कमी होने लगी तो ऊंची इमारतों में फ्लैट संस्कृति पनप गई। इस महानगरीय संस्कृति को कोरोना के संक्रमण ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। देश-दुनिया से आए आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस बीमारी के लगभग सभी मरीज शहरी हैं। वे विदेश यात्राएं करके अपने शहर लौटे थे, जिनसे दूसरे शहरियों को यह संक्रमण हो गया। लॉकडाउन करने की घोषणाओं पर अपने मूल स्थानों की ओर ट्रेनों से लौटने वालों में से ज्यादातर शहरों का कामगार तबका है जो जान बचाने के लिए गांव-देहात कूच करना चाहता है।
अजीब विडंबना है कि जो शहर रोजगार, सुख-सुविधाओं और विकास का केंद्र माने जाते हैं, आज एक ही झटके में सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। सिर्फ चीन का वुहान शहर ही नहीं (जहां से कोरोना का संक्रमण फूटकर बाहर निकला है), बल्कि दुनिया का हर वह शहर आज समस्या की नींव बनता नजर आ रहा है कि जहां इस ग्लोबल होती दुनिया के दूसरे शहरों और देशों से लोगों का आना-जाना लगा रहता है। बहुत मुमकिन है कि विकास और ताकत के प्रतीक बन गए शहरीकरण की ऐसी दुर्गति देखकर योजनाकार भावी शहरों की कोई नई रूपरेखा प्रस्तुत करें, जिसमें सिर्फ सहूलियतों का प्रबंध नहीं किया जाएगा, बल्कि एक झटके में लोग संक्रामक बीमारियों की चपेट में न आ जाएं-इसकी व्यवस्था भी बनाई जाएगी।
बदलेगा विज्ञान के प्रति नजरिया : कोरोना की वैश्विक आपदा को लेकर एक नजरिया यह भी बना है कि चूंकि सरकारों से लेकर आम समाजों तक ने वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चेतावनियों पर ध्यान देना बंद कर दिया है, इसलिए प्रकृति अपने हिसाब से बदला ले रही है। यह कोई सामान्य आरोप नहीं है। बीते 50 वर्षों में ही सार्स, इबोला, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, डेंगू, इंसेफेलाइटिस, एड्स आदि तमाम बीमारियों के प्रसार के अलावा ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याओं ने इस धरती और इस पर बसे इंसान के जीवन की मुश्किलें बढ़ाई हैं। बाढ़, सूखे, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ी है और उनकी ताकत में भी इजाफा हुआ है। तापमान बढ़ने से ध्रुवों के अलावा ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया तेज हुई है।
पता चल रहा है कि कार्बन डाईऑक्साइड आदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में लगातार बढ़ोतरी के कारण जैसे-जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग का असर बढ़ेगा, सूखे-बाढ़-तूफान की बारंबारता में तेजी आएगी, ग्लेशियर पिघलेंगे, समुद्र का जलस्तर उठेगा और ऊष्ण कटिबंधीय बीमारियों में इजाफा होगा। तापमान में यह उतार-चढ़ाव खेती पर भी असर डालेगा, जिससे दुनिया में 40 करोड़ लोग भुखमरी की चौखट पर पहुंच सकते हैं। विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री निकोलस स्टेर्न कहते हैं कि यदि ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने में और देरी की गई तो आगे चलकर हमें इस विलंब की 20 गुना ज्यादा कीमत देनी पड़ सकती है। बेकाबू होते हालात से साफ है कि प्रकृति के संकेतों को लेकर अब और ज्यादा हीलाहवाली नहीं की जा सकती।
इस पूरे घटाटोप अंधकार में रोशनी की एक किरण इस रूप में बाकी है कि अब दुनिया के पास ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने की टेक्नोलॉजी है, लेकिन इसके इस्तेमाल और उत्सर्जन में कटौती के समझौतों से बाहर रहने की जिद के चलते जीवन ही हर वक्त संकट में पड़ा रहता है। इन्हीं वजहों से कई बार छोटी सी बीमारी के महामारी में बदल जाने का खतरा बन जाता है। कोरोना प्रकरण से हो सकता है कि विज्ञान की इन चेतावनियों को अब अमेरिका समेत पूरा विश्व गंभीरता से ले और इन हालातों को बदलने के संकल्पों पर खरा उतरने की कोशिश करे।
स्वास्थ्य पर खर्च और तैयारियां : संक्रमण के रूप में नई आपदा से जूझ रही दुनिया का संकट इसलिए भी ज्यादा बढ़ा दिखाई देता है, क्योंकि भारत जैसे आबादीबहुल देशों में न तो पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं हैं और न ही सरकारें नागरिकों की सेहत पर ज्यादा खर्च करती हैं। कोरोना से पैदा मुश्किलें बढ़ीं तो पता चला कि देश के 1.3 अरब आबादी के बरक्स हमारे पास सिर्फ 40 हजार वेंटिलेटर हैं, जबकि तीन करोड़ की आबादी वाले महाशक्ति देश अमेरिका में वेंटिलेटर की संख्या एक लाख 70 हजार है। यह फर्क ही साफ करता है कि क्यों हमारे देश को 21 दिनों तक लॉकडाउन करने की जरूरत पड़ रही है।
यदि लॉकडाउन का उपाय नहीं आजमाया गया और लोगों की सामान्य दिनचर्या जारी रही तो ऐसे में संक्रमित होने वाली भारी आबादी के इलाज की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। इसके अलावा पिछले 10-12 वर्षों में इलाज की लागत 300 फीसद तक बढ़ गई है और ज्यादातर परिवार इलाज खर्च का 60 से 80 फीसद हिस्सा बीमा से बाहर अपनी आय से देते हैं और इसमें कई बार उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाती है। अभी तक देश के हेल्थ सेक्टर में सरकारें कोई ज्यादा योगदान नहीं करती रही हैं। साथ ही देश के सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में कम घपले नहीं हैं, यह बात एनआरएचएम जैसे घोटालों से साबित हो चुकी है। जरूरी दवाओं की कीमत पर समुचित नियंत्रण नहीं होने के कारण आम लोगों को अपनी सेहत की फिक्र करना भारी पड़ता जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में भर्ती आम मरीजों को लिखी जाने वाली दवाओं के बारे में आंकड़ा यह है कि फिलहाल सिर्फ 9 फीसद दवाएं ही अस्पतालों से दी जाती हैं, बाकी सारी दवाएं उन्हें बाहर से मंगानी पड़ती हैं। ये सारे तथ्य और आंकड़े साबित कर रहे हैं कि अगर कोरोना मामले से हमारी सरकारों ने कोई ठोस सबक लिया और स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त सुधार किए तो कोई संक्रमण बदहवासी का ऐसा आलम नहीं पैदा करेगा, जैसा कि आज है।
जांच की आधुनिक तकनीक : हाल के वर्षों में स्वाइन फ्लू और बर्ड फ्लू के प्रसार की खबरें आने पर हमारे ही देश में हवाई अड्डों पर यात्रियों में से संक्रमित मरीजों की पड़ताल कर उन्हें पृथक वार्ड (आइसोलेशन) में रखने की कुछेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन पहली बार दुनिया ने देखा है कि थर्मल स्क्रीनिंग से शरीर का तापमान मापकर लगभग हर जगह मरीजों की पहचान की जा रही है। हालांकि यह व्यवस्था पुख्ता नहीं है, पर इससे यह उम्मीद जगी है कि आगे चलकर खासकर संक्रामक रोगों के वाहक मरीजों की जांच-पड़ताल का काम गंभीरता के साथ सभी देशों में नियमित रूटीन के तहत किया जाएगा।
चीन ने इस मामले में एक उदाहरण सामने रखा है। भले ही कोरोना का वायरस इसी देश से पनपा, लेकिन चीन ने लोगों के स्मार्टफोन, चेहरों को पहचानने की आधुनिक तकनीक से लैस लाखों कैमरों, शरीर का तापमान दर्ज करने वाली मशीनों के बल पर मरीजों की त्वरित पहचान की और आज ऐसा माना जा रहा है कि वह इस बीमारी के प्रसार पर तकरीबन काबू पा लिया है। हालांकि यह काम अकेले मशीनों के बल नहीं हुआ, बल्कि इसमें वहां की जनता का सहयोग भी मिला। चीन से आ रही खबरों के अनुसार वहां के लोगों ने लॉकडाउन के नियमों का सहजता से पालन किया और जो जांच- पड़ताल जरूरी थी, उसमें भरपूर सहयोग दिया। इसके उलट हमारे देश में अभी कई लोगों द्वारा लॉकडाउन को धता बताने की कोशिशें हो रही हैं, जिससे जनता में संक्रमण को हल्के में लेने की मानसिकता का पता चल रहा है। उम्मीद है कि इन सारे उपायों के बारे में जनता में भी जागरूकता आएगी और कोरोना जैसे खतरों से निपटने में सिस्टम का सहयोग कितना जरूरी है- यह समझ उसमें बनेगी।

                    HARSHIT KASHYAP

नए साल की शुभकामनाएं!

नए साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएं! जाँते के गीतों को, बैलों...