विद्यार्थी-जीवन की एक घटना भुलाए नहीं भूलती। हम दसवीं कक्षा में थे। हिंदी के अध्यापक ने शिक्षा के उद्देश्य पर एक लंबा-चौड़ा भाषण दिया। जिला विद्यालय निरीक्षक हमारे कॉलेज का निरीक्षण करनेवाले थे। गुरुजी ने घोषणा की कि कक्षा में जो छात्र शिक्षा के उद्देश्य पर सबसे अच्छा भाषण तैयार करके लाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। सभी छात्र गुरुजी द्वारा बताए जा रहे शिक्षा के उद्देश्यों को नोट करने में व्यस्त थे। गुरुजी कह रहे थे कि शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य बच्चों को एक अच्छा शहरी, भविष्य का एक अच्छा इनसान बनाना है। उन्हें किस तरह समाज और व्यक्तिगत जीवन के बीच नैतिक आधार पर संतुलन स्थापित करना चाहिए तथा हर प्रकार के लोभ, लालच, क्रोध और घृणा की भावनाओं को त्यागकर अन्य लोगों की निस्स्वार्थ सेवा करनी चाहिए, बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार देना चाहिए।
गुरुजी का भाषण समाप्त हुआ तो एक छात्र ने अपना हाथ उठाया। सभी को लगा, जैसे कक्षा भर में अकेला छात्र यही है, जिसने गुरुजी द्वारा दिए गए उपदेश को हाथोहाथ कंठस्थ कर लिया है। गुरुजी ने उसकी ओर देखकर संकेत किया—
‘हाँ बेटे! तुम समझे, शिक्षा का उद्देश्य?’ छात्र की ओर से उत्तर आया—‘यस सर!’ ‘बोलो,’—गुरुजी ने आदेश दिया। छात्र बोला, ‘तनख्वाह।’
उस बालक का यह जवाब पूरी शिक्षा व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है जिन्होंने शिक्षा का अर्थ केवल धनोपार्जन कर दिया है। जबतक लोग केवल नौकरी करने के लिए पढ़ेंगे समाज में नौकर पैदा होंगे अन्य कोई नहीं।।
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