पाश्चात्य संस्कृति को मानने वाले यूरोप तथा उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के देश़ों में मई महीने के दूसरे रविवार को ‘मातृ दिवस’ अर्थात ‘मदर्स डे’ मनाया जाता है । वहाँ की देखादेखी अपने देश में भी मदर्स डे मनाया जाने लगा है ।
चूँकि पाश्चात्य संस्कृति में परिवार की तुलना में व्यक्ति गत स्वतंत्रता तथा आर्थिक निर्भरता को अधिक महत्व दिया जाता है । इसी कारण वहाँ के अधिकतर लोगों के पास, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हो, कर्मचारी हो, श्रमिक हो या अधिकारी हो, गाँव का रहने वाला हो या फिर महानगरों का, अपने परिवार के लिए समय का नितांत अभाव होता है ।
वृद्ध माता-पिता की देखभाल का वक्त न बेटों के पास होता है और न ही बहुओं के पास । अत: सामान्य तौर पर वृद्ध जन वृद्धाश्रमों में रहने के लिए विवश होते हैं । बच्चों की देखरेख के लिए आया, झूला घर,बच्चा घर आवासीय विद्यालयों आदि की व्यवस्थायें होती है ।
चूँकि मानव जीवन में धन तथा भोग विलास के संसाधनों की जितनी आवश्यकता होती है, उतनी ही आवश्यकता परिवार की भी होती है । इसी कारण परिवार नामक संस्था को जीवित रखने के लिए पाश्चात्य देश़ों में मातृ दिवस, पितृदिवस, डाटर्स डे आदि मनाने की परंपरा है। मदर्स डे मई माह में दूसरे रविवार को मनाया जाता है तथा यूरोपियन और अमेरिकन देश़ों में रविवार को साप्ताहिक छुट्टी का दिन होता है ।
इस कारण वहाँ मदर्स डे की बड़ी धूम होती है । अपनी माता के लिए उपहार तथा ‘हैप्पी मदर्स डे’ वाले कार्ड खरीदे जाते हैं । कोशिश यह भी होती है कि पूरा परिवार एक साथ किसी रेस्तराँ या फिर घर पर लंच या डिनर करे । यह स्मृतियों को ताजा करने का भी दिन होता है ।
दादा-दादी और नाना नानी अपने पोते-पोतियों, नवासे-नवासियों को उनके माता-पिता के बचपन की महत्वपूर्ण घटनाओं के संबंध में जानकारी देते हैं । शाम होते-होते वृदध माता-पिता पुनः वृदाश्रम में होते हैं तथा उन्हें एक बार फिर से मातृ-पितृ दिवस की प्रतीक्षा होती है ।
भारतीय संस्कृति इससे उलट है । महानगरों में जहाँ छोटे-छोटे एक या दो कमरों में पूरा परिवार जैसे-तैसे रहता है । वहाँ विवशता में (अपवादों को छोडकर) वृद्धजनों को वृद्धाश्रमों में रहना पड़ता है । छोटे शहरों विशेषकर गाँवों में वृद्ध माता-पिता की भूमिका आज भी नहीं बदली है, धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों में बड़े बूढ़ों की ही चलती है । अलग चूल्हा-चौका होने पर भी बहुयें बारी-बारी ,से सास -ससुर की सेवा करती हैं ।
भारत में मदर्स डे पारंपरिक तौर तरीकों से मनाया जाता है, केक काटने जैसे आधुनिक रिवाज के अलावा माता-पिता को तिलक लगा कर उनकी आरती उतारना और चरणवन्दना कर आशीर्वाद लेना यह मदर्स डे सेलीब्रेट करने का ठेठ देशी तरीका है । भेंट स्वरुप माँ को साड़ी तथा पिताजी को धोती -कुर्ता (पैंट-शर्ट भी) दिया जाता है । कहीं-कहीं गुलदस्ता तथा माता-पिता के पसंद की मिठाईयाँ और पकवान (चाकलेट) भी भेंट किया जाता है ।
पूरी सृष्टि में सिर्फ मानव शिशु को अधिकतम तथा दीर्घकाल तक देखरेख की आवश्यकता होती है । मानव जीवन का ऐसा कोई कालखंड नहीं है जिसमें उसे वरिष्ठ जनों के देखरेख तथा सुरक्षा की आवश्यकता न हो ! माता अपने पुत्र/पुत्री देखभाल तथा चिंता जितने शिद्दत से करती है, उतना कोई दूसरा नहीं कर सकता । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में माता का स्थान सर्वोपरि है ।
चूँकि गाय अपनी दूध से मानव देह को पुष्ट करती है इसलिए गाय ‘गौमाता’है । धरती सदा धारण करती है इसलिए धरती भी माता है । देश की भूमि सारी सुख सुविधाएं, सुरक्षा, नाम व पहचान देती है, इसलिए यह हमारी ‘भारत माता’ है । अन्न, शाक,फल से देह पुष्ट होता है तथा कार्यकारी ऊर्जा प्राप्त होती है, इसलिए अन्न आदि अन्नपूर्णा माता है । संतान की रक्षा के लिए माता उग्र रुप धारण करती है तथा काल से भी भिड़ जाती है, इसलिए संतान के प्राणों तथा संस्कृति की रक्षा करने वाली शिवा अर्थात दुर्गा माता है ।
भारतीय संस्कृति में माँ का विस्तार अनंत है । यह विषय व्याख्या तथा कल्पना से परे है ।
अस्तु—
‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणि संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम: ।
इंटरनेशनल मदर्स डे अर्थात अंतरराष्ट्रीय मातृदिवस के उपलक्ष्य में समस्त मातृशक्तियों को बहुत-बहुत बधाई और अनंत शुभकामनाएं !!
Nice
ReplyDeletebhaut hi sunder..!!
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteAwesome
Good
Amazing sir
🔥
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