एक लड़का था. अपने गाँव का सबसे होनहार और शिक्षित. पिताजी गर्व से लोगो को बताते फिरते थे कि उनका बेटा देश की रक्षा कर रहा है. अपने गाँव का पहला वर्दीधारी था वो. माँ आधे दिन इंतजार और आधे दिन उसकी बड़ाई में गुजारती थी. उसका एक बचपन का प्यार भी था जिसे उसने पुरे समाज से लड़कर अपनाया था, अग्नि को साक्षी मानकर उसके साथ जीने मरने की कसमें खाया था. लेकिन दूसरी तरफ लड़का, वो तो मातृभूमि के लिए अपना दायित्व निभा रहा था.
माँ कहती थी कि जब जब सूरज की किरणें घर की चौखट पर पड़ती है आँखे अपने बच्चें को देखने के लिए उम्मीद बाँधने लगती है. पत्नी जो कभी गुस्सा होती तो कभी प्यार जताती लेकिन मन में डर बनाये रखती थी. पिता जो बेटे के साहस और कर्तव्य पर गर्व से फुले नहीं समाते उनके माथे में भी अख़बारों के पन्नें से आई ख़बरें शिकन ले आती थी.
ऐसे ही एक रोज वो अपने घर आया था. बड़ी दिनों के बाद छुट्टियां मिली थी उसे. माँ और पत्नी के लिए साड़ियां लाया था, पिता के पसंद का वही सफ़ेद कुर्ता पैजामा भी याद था उसे. पूरा गाँव उसके स्वागत के लिए खड़ा था, आखिर उस गाँव का असली हीरो जो आया था. एक कंधे में माँ और पत्नी के प्यार और दूसरे कंधे में अपने दायित्व का बोझ उठाने के बाद भी उसके चेहरे में मुस्कान कायम थी.
छुट्टियां ख़त्म हो गयी, जाने का समय हो चुका था. माँ के आँखों के आँसू थम नहीं रहे थे, पत्नी अपनी भावनाएं छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, और पिता बेटे को समझाईश देकर अपने होने का दायित्व निभा रहे थे. बेटा जो माँ को वापस आने का अनजाना सा वादा किया जा रहा था, पत्नी को अपने होने और साथ बनाये रखने का हौसला देते हुए जा रहा था. जल्द ही एक लंबी छुट्टी लेकर वापस आने का वादा किया था उसने.
कुछ समय बाद 'वो' वापस आया. पूरा गाँव फिर से उसके स्वागत के लिए तैयार खड़ा था. लेकिन इस बार वह चलकर नहीं बल्कि लेटकर आया था. अकेले नहीं उसको लाने पूरी फ़ौज आई थी. वो लड़का जिसने अपना दायित्व निभाया था, उसकी माँ और पत्नी फिर से उसके आने पर रो रहे थे. पिता स्तब्ध खड़े थे. माहौल बिल्कुल ही शांत था. आखिर उस लड़के ने अपने लिए एक 'माँ' और चुना था. उस माँ की रक्षा को अपना दायित्व बनाया था उसने. उसी दायित्व को निभाते हुए वो चला गया.
उसके जाने से उस गाँव के बाहर कहीं कुछ नहीं बदला. बस एक माँ है जो अब दिन भर रोती है और अपने बेटे के तस्वीर को निहारती रहती है. एक पत्नी है जिस पर अपने माँ-पिता समान सास-ससुर के साथ साथ उसके शारीर में पल रहे एक और वीर योद्धा की ज़िम्मेदारी है. ना कोई मुआवजा है, ना कोई परिवार है, ना कोई सहारा है, है तो केवल दायित्व! और उस दायित्व को पूरा करने की शक्ति!
Waah
ReplyDeleteWaah
ReplyDeleteA salute to bravE hearts of our country....👮♂️👮♂️👨✈️👨✈️
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकथा में मोड़ आने का तरीका काबिले-तारीफ है।
Thanks Sir
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