Friday, 26 June 2020

परीक्षा कक्ष "एक शिक्षक की नजर से"

कितना कठिन समय है वो परीक्षा के 2 घंटे । किसी को बहुत ज्यादा लगते हैं और किसी को बहुत कम।बहुत बार परीक्षा में ड्यूटी दी है मैंने और देखा उन 2 घंटो में विद्यार्थी क्या–क्या हरकतें करते है।जिनको पेपर आता है वो तो बेचारे गर्दन भी नहीं उठा पाते,लगातार लिखते ही रहतें है।बार–बार अतिरिक्त उत्तर पुस्तिका लेते हैं।मगर कुछ ऐसे होते है, जो उनको देख देख कर ये जानने के लिए तड़प रहे होते है की इन्होंने क्या–क्या लिख दिया।
   मुझे तो उन बेचारों पर बहुत तरस आता है जो पूरा साल कक्षा में मस्ती मारते हैं और परीक्षा वाले कमरे में बड़ी बेचारी सी शक्ल बनाते है।इधर उधर झांकने की कोशिश करते हैं।उनको ऐसा करने के लिए मना कर दो तो हमे दुश्मन की भांति देख रहे होते है।2 घंटे से पहले उत्तर पुस्तिका वापिस नहीं लेने के फरमान होते है तो उनको 2 घंटे परीक्षा कक्ष में बैठाना पड़ता है और उनकी हरकतों पर ध्यान रखना पड़ता है।
       नकल करने के सभी प्रयास जब विफल हो जातें है तो वो परीक्षा कक्ष का बहुत ही बारीकी से अध्ययन करना शुरू कर देते है।पहले शुरुआत पंखे से करते है।देखते है कि कमरे में कितने पंखे है,कौन सा पंखा ज्यादा चल रहा है कौन सा पंखा अधिक आवाज़ कर रहा  है।फिर कुछ देर श्यामपट्ट को देखते है।खाली श्यामपट्ट पर कुछ ढूंढने का प्रयास करते है।फिर उनकी नजर खिड़कियों की तरफ मुड़ जाती है।लगता है जैसे खिड़कियों पर लगी लोहे की सलाखों को गिन रहे हो।बीच में बार बार निरीक्षक को आशा भरी निगाहों से देखते है और प्रयास विफल होने पर बुरी सी शक्ल बना लेते है। उनकी नजर दीवारों पर जाती है।परीक्षा कक्ष की दीवार को जब एकटक देखते हैं तो लगता है कि मन ही मन दीवार के रंग से चिढ़ रहे हो।फिर उन्हें याद आता है कि वो पेशाब करने के बहाने बाहर जा सकते है।
उनके लिए वो दो घंटे परीक्षा कक्ष में बिताना किसी सजा से कम नहीं होता।जैसे ही उत्तर पुस्तिका एकत्र करना शुरू करते सबसे पहले जमा करके परीक्षा कक्ष से बाहर भाग जाते है।अंत के आधे घंटे में कुछ पढ़ाकू विद्यार्थी ही कक्ष रह जाते है जो पूरे दो - ढाई घंटे लिखते रहते है।उनमें से एक आध ऐसा होता जिसको ये समय भी थोड़ा पड़ जाता है।उनकी कलम अंत में सारे ट्रैफिक सिग्नल तोड़कर भागती प्रतीत होती है मगर ज्यादा देर तक नहीं चल पाती क्योंकि हमे उनकी पुस्तिका छीननी पड़ती है।
          परीक्षा के बाद तो हर विद्यार्थी ऐसा लगता है,जैसे कोई मजदूर बहुत सारा बोझ कंधे से उतारकर नीचे रख देता है और फिर एक गहरी चैन भरी सांस लेता है।फिर एक अजीब सा सुकून चेहरे पर लेकर परीक्षा कक्ष से बाहर चला जाता है।

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