कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश एक भीषण संकट से गुजरा है। दूसरी लहर के कारण लाखों परिवार इस गहरे संकट से प्रभावित हो चुके हैं|हमें ऑक्सीजन,दवाइयों और वैक्सीन की राजनीति के मुद्दे से परे होकर देश के लाखों लोगों के बीच फैली भूखमरी की समस्या पर भी ध्यान देना चाहिए। आइए इस अनजान आपदा से शुरू करते है, और 2020 के मार्च और अप्रैल से इसके अंतर को देखते है।। पिछले साल, भोजन और राशन की कमी बड़ी दिखाई देने वाली समस्या थी। लेकिन यह केवल प्रवासियों तक ही सीमित थी, जिन्हें हम देख सकते थे और जब तक वे बड़े शहरों में थे, हम उन्हें भोजन प्रदान करने में सक्षम थे। जैसे ही वे 100 किमी दूर चले गए, और यहां तक कि गांवों में भी, वे हमारे पहुंच से बाहर हो गए थे। जैसे ही वे अदृश्य हो गए, उनकी जरूरतों को बड़े पैमाने पर सरकारों, एजेंसियों और मीडिया द्वारा अनदेखा कर दिया गया। महामारी की पहली लहर इस बात का सबूत थी कि देश की आबादी में आधे से अधिक सम्मिलित होने के बावजूद भी भारतीय गांव विकास के एजेंडा का हिस्सा नहीं हैं, और यहां तक कि संकट के समय में भी वे बड़े शहरों की जरूरतों के बाद, ही याद आते हैं। किसानों को केवल भोजन देने के वाले के तौर पर देखा जाता है और कठिनाई मे रहने वाले किसानो को कारखाने, इमारतों और घरों में प्रवासी श्रमिकों या श्रम के रूप में देखा जाता है।
दूसरी लहर स्वास्थ्य संकट बनकर उभरी है। इसलिए अभी, बातचीत ऑक्सीजन सिलेंडरों, सांद्रता, वेंटिलेटर, आईसीयू बेड, ड्रग्स आदि के बारे में हैं। इन आधारभूत सुविधाओं की कमी के चलते, हम इस लहर के दौरान एक दूसरे पर निर्भर हो गए हैं। हम हमारे प्रियजनों को बचाने के लिए व्हाट्सएप पर दोस्तों और परिवारों से संपर्क करते हैं। हालांकि,इन सब के बीच एक अहम बात जो हम भूल रहे हैं कि हम एक साल से अधिक समय से इस पीडा से जूझ रहे है और तनाव में रहे है, सभी परिवारों पहले से ही कठिनाई मे है जिनके पास आजीविका की कमी है , कम आय है , जिन्हे पर्याप्त भोजन तक नहीं मिल रहा है। भूख हमारी आबादी के बड़े हिस्से के लिए सतत आपदा हैं| महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश जैसे शहरों, कस्बों और पूरे राज्य कुछ समय के लिए लॉकडाउन में रहे| पिछले साल, जैसे ही राष्ट्रीय लॉकडाउन की घोषणा की गई, लोगों ने भोजन वितरित करना शुरू कर दिया था|इस साल, उस मोर्चे पर लगभग कोई बात नहीं हो रही हैं, सब कुछ केवलऑक्सीजन और बिस्तरों के बारे में ही सिमट गई हैं।
शहरों में सबसे कम आय वाले परिवारों के लिए, उनका ऑक्सीजन दाल चावल है। उनके पास भोजन पहुंचने के लिए कोई पर्याप्त साधन नहीं है| यह स्थिति गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी हैं,क्योंकि भूख के मुद्दे को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया हैं| पहले लॉकडाउन के बाद गांवों से वापस आने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिकों को उचित काम और ठीक से भोजन नहीं मिलने पर भी वे वापस नहीं लौटे । लेकिन पिछले साल की तरह इस बार उनके लिए भोजन की कोई व्यवस्था नहीं की गई हैं| और बहुत लोगो ने कोई बचत भी नहीं कर रखी है जिससे वे इस समय को गुजार सके।|चीजें जल्द ही बेहतर होने की संभावना नहीं है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि दूसरी लहर स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक हैं पर इसका मतलब यह नहीं है कि भूख कोई मुद्दा नहीं है। दूसरी लहर लोगों को वेंटिलेटर और ऑक्सीजन के माध्यम से जीवित रखने के बारे में है, लेकिन अधिकांश के लिए, पेरासिटामोल और अन्य बुनियादी दवाएं ही उनके लिए जीवन रक्षक है। आज लाखों लोगों के लिए, साधारण दाल चावल मिलना ऑक्सीजन मिलने से कम नहीं है।
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शायद हंसी भी भूख से हार गई |