Sunday, 27 June 2021

भूख

 कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश एक भीषण संकट से गुजरा है। दूसरी लहर के कारण लाखों परिवार इस गहरे संकट से प्रभावित हो चुके हैं|हमें ऑक्सीजन,दवाइयों और वैक्सीन की राजनीति के मुद्दे से परे होकर देश के लाखों लोगों के बीच फैली भूखमरी की समस्या पर भी ध्यान देना चाहिए। आइए इस अनजान आपदा से शुरू करते है, और 2020 के मार्च और अप्रैल से इसके अंतर को देखते है।। पिछले साल, भोजन और राशन की कमी बड़ी दिखाई देने वाली समस्या थी। लेकिन यह केवल प्रवासियों तक ही सीमित थी, जिन्हें हम देख सकते थे और जब तक वे बड़े शहरों में थे, हम उन्हें भोजन प्रदान करने में सक्षम थे। जैसे ही वे 100 किमी दूर चले गए, और यहां तक कि गांवों में भी, वे हमारे पहुंच से बाहर हो गए थे। जैसे ही वे अदृश्य हो गए, उनकी जरूरतों को बड़े पैमाने पर सरकारों, एजेंसियों और मीडिया द्वारा अनदेखा कर दिया गया। महामारी की पहली लहर इस बात का सबूत थी कि  देश की आबादी में आधे से अधिक सम्मिलित होने के बावजूद भी भारतीय गांव  विकास  के एजेंडा का हिस्सा नहीं हैं, और यहां तक कि संकट के समय में भी वे बड़े शहरों की जरूरतों के बाद, ही याद आते हैं। किसानों को केवल भोजन देने के वाले के तौर पर देखा जाता है और कठिनाई मे रहने वाले किसानो को कारखाने, इमारतों और घरों में प्रवासी श्रमिकों या श्रम के रूप में देखा जाता है।

दूसरी लहर स्वास्थ्य संकट बनकर उभरी है। इसलिए अभी, बातचीत ऑक्सीजन सिलेंडरों, सांद्रता, वेंटिलेटर, आईसीयू बेड, ड्रग्स आदि के बारे में हैं।  इन आधारभूत सुविधाओं की कमी के चलते, हम इस लहर के दौरान एक दूसरे पर निर्भर हो गए हैं। हम हमारे प्रियजनों को बचाने के लिए व्हाट्सएप पर दोस्तों और परिवारों से संपर्क करते हैं। हालांकि,इन सब के बीच एक अहम बात जो हम  भूल रहे हैं कि  हम एक साल से अधिक समय से इस पीडा से जूझ रहे है  और तनाव में रहे है, सभी परिवारों पहले से ही कठिनाई मे है जिनके पास आजीविका की कमी है , कम आय है , जिन्हे पर्याप्त भोजन तक  नहीं  मिल रहा  है। भूख हमारी आबादी के बड़े हिस्से के लिए सतत आपदा हैं| महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश जैसे शहरों, कस्बों और पूरे राज्य कुछ समय के लिए लॉकडाउन में रहे| पिछले साल, जैसे ही राष्ट्रीय लॉकडाउन की घोषणा की गई, लोगों ने भोजन वितरित करना शुरू कर दिया था|इस साल, उस मोर्चे पर लगभग कोई बात नहीं  हो रही हैं, सब कुछ केवलऑक्सीजन और बिस्तरों के बारे में ही सिमट गई हैं।

शहरों में सबसे कम आय वाले परिवारों के लिए, उनका ऑक्सीजन दाल चावल है। उनके पास भोजन पहुंचने के लिए कोई पर्याप्त साधन नहीं है| यह स्थिति गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी हैं,क्योंकि भूख के मुद्दे को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया हैं| पहले लॉकडाउन के बाद गांवों से वापस आने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिकों को उचित काम और ठीक से भोजन  नहीं मिलने पर भी वे वापस नहीं लौटे । लेकिन पिछले साल की तरह इस बार उनके लिए भोजन की कोई व्यवस्था नहीं की गई हैं| और बहुत लोगो ने कोई बचत भी नहीं कर रखी  है जिससे वे इस समय को गुजार सके।|चीजें जल्द ही बेहतर होने की संभावना नहीं है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि दूसरी लहर स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक हैं पर  इसका मतलब यह नहीं है कि भूख कोई मुद्दा नहीं है। दूसरी लहर लोगों को वेंटिलेटर और ऑक्सीजन के माध्यम से जीवित रखने के बारे में है, लेकिन अधिकांश के लिए, पेरासिटामोल और अन्य  बुनियादी दवाएं ही  उनके लिए जीवन रक्षक है। आज लाखों लोगों के लिए, साधारण दाल चावल मिलना ऑक्सीजन मिलने से कम नहीं है।


शायद हंसी भी भूख से हार गई 


Wednesday, 16 June 2021

मानव विलुप्ति

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
प्रकृति को धरा का आलिंगन करने के पश्चात्‌  प्रेम की अनुभूति हुई, यह अनुभूति इतनी प्रबल और प्रगाढ़ थी कि प्रकृति और धरा फिर कभी अलग न हो पाये, अपने चारों ओर देखें तो हम आज भी उस आलिंगन को देख सकते हैं...
भावनाओं में बहने वाली प्रकृति को धरा के रूप में एक स्थिर चित्त साथी मिल गया जिसने न केवल प्रकृति की भावनाओं को स्थिरता प्रदान की अपितु उन्हें स्वयं से बाँध लिया... आज भी इस प्रेम का प्रकर्ष दोनों को एक-दूसरे से बांधे हुये है।
प्रकृति और धरा दो पूर्णतः भिन्न स्वभाव के होते हुये भी, इसप्रकार हुये की दोनों में किसी एक के न होने पर दूसरा स्वयं नष्ट हो जाएगा। 
वास्तव में प्रेम की यही परिभाषा है।प्रकृति और धरा दो पूर्णतः भिन्न स्वभाव के होते हुये भी, इसप्रकार एक हुये की दोनों में किसी एक के न होने पर दूसरा स्वयं नष्ट हो जाएगा। 
यही वह अनुभव था, जिससे प्रकृति को मानव सृजन प्रेरणा हुई। ईश्वर ने प्रकृति और धरा के प्रेम को रूप देने का कार्य किया....
आज मनुष्य सारी परिभाषायें बदल रहा है, जीवन के लिये अवश्यक क्षुधा ने आज लोभ का रूप ले लिया है, और लोभ में मानव इस प्रकार लिप्त है कि उसे ना धरा की पुकार सुनायी दे रही है ना ही प्रकृति का विलाप।
स्वयं को सर्व शक्तिमान समझने वाला मानव, दोहन को प्रगति समझने वाला मानव, धन को एक मात्र साधन समझने वाला मानव, आज प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है, ऐसा भ्रम कर बैठा है। आज जनमानस में व्याप्त त्राहि और विनाश या तो मानव स्वयं देखना नहीं चाहता या मानव दृष्टिहीन होने के साथ भावहीन भी हो चुका है। 
हमने बचपन में पढ़ा था, "पृथ्वी एक अनोखा ग्रह है, ब्रम्हाण्ड में जीवन मात्र पृथ्वी पर ही सम्भव है", क्या पता था कि हम इसे नष्ट कर, दूसरे ग्रह पर जीवन खोजने की मृगतृष्णा जागृत कर लेंगे... आज मानव लगभग आधी प्राकृतिक सम्पदा नष्ट कर चुका है, यदि इस बिन्दु से वह इसी दिशा में अग्रसर होता है, तो विश्वास कीजिये पश्चात वापसी का कोई मार्ग शेष नहीं रहेगा।
यदि मानव ने भीतर का अंधकार अब नहीं मिटाया, तो प्रकृति की वेदना और ईश्वर का क्रोध मानव को नष्ट कर देगा, यह एक माँ के लिये अपने शिशुओं को खोने जैसा ही होगा, परन्तु ईश्वर को यह कठोर निर्णय लेना होगा और वह अवश्य लेगा। या तो संपूर्ण मानव-जाति नष्ट कर देगा या मुट्ठी भर बचेंगे, पुनः शुरुआत करने के लिये, यदि हममें से कुछ दया के पात्र हुये तो।
आप बताइये आप क्या खोना चाहेंगे, 
"पृथ्वी एक अनोखा ग्रह" अथवा "मानव-जाति का विकास"?
निर्णय आपका है।
धरा को हम नष्ट कर सकें, ये हमारी क्षमताओं से परे है।
परन्तु, हम अवश्य नष्ट हो जायेंगे।
विचार कीजिये। कार्य कीजिये। मानव बने रहिये।

नए साल की शुभकामनाएं!

नए साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएं! जाँते के गीतों को, बैलों...