Saturday, 26 September 2020

गुस्सा "स्वयं से संघर्ष "

 बंद दुकान में कहीं से घूमता फिरता एक सांप घुस गया।दुकान में रखी एक आरी से टकराकर सांप मामूली सा जख्मी हो गया। घबराहट में सांप ने पलट कर आरी पर पूरी ताक़त से डंक मार दिया जिस कारण उसके मुंह से खून बहना शुरू हो गया। अब की बार सांप ने अपने व्यवहार के अनुसार आरी से लिपट कर उसे जकड़ कर और दम घोंट कर मारने की पूरी कोशिश कर डाली। अब सांप अपने गुस्से की वजह से बुरी तरह घायल हो गया। दूसरेदिन जब दुकानदार ने दुकान खोली तो सांप को आरी से लिपटा मरा हुआ पाया ।जो किसी और कारण से नहीं केवल अपनी तैश और गुस्से की भेंट चढ़ गया था। 

कभी कभी गुस्से में हम दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं मगर समय बीतने के  बाद हमें पता चलता है कि हमने अपने आप का ज्यादा नुकसान किया है।


सीख - - 

अच्छी जिंदगी के लिए कभी कभी हमें, कुछ चीजों को, कुछ लोगों को, कुछ घटनाओं को,कुछ कामों को और कुछ बातों को नजर अन्दाज  करना चाहिए। अपने आपको मानसिक मजबूती के साथ नजरअन्दाज करने का आदी बनाइये।जरूरी नहीं कि हम हर एक्शन का एक रिएक्शन दिखाएं।हमारे कुछ रिएक्शन हमें केवल नुकसान ही नहीं पहुंचाएंगे बल्कि हो सकता है कि हमारी जान ही ले लें। 

सबसे बड़ी शक्ति सहन शक्ति है।


Saturday, 19 September 2020

दायित्व

एक लड़का था. अपने गाँव का सबसे होनहार और शिक्षित. पिताजी गर्व से लोगो को बताते फिरते थे कि उनका बेटा देश की रक्षा कर रहा है. अपने गाँव का पहला वर्दीधारी था वो. माँ आधे दिन इंतजार और आधे दिन उसकी बड़ाई में गुजारती थी. उसका एक बचपन का प्यार भी था जिसे उसने पुरे समाज से लड़कर अपनाया था, अग्नि को साक्षी मानकर उसके साथ जीने मरने की कसमें खाया था. लेकिन दूसरी तरफ लड़का, वो तो मातृभूमि के लिए अपना दायित्व निभा रहा था.


माँ कहती थी कि जब जब सूरज की किरणें घर की चौखट पर पड़ती है आँखे अपने बच्चें को देखने के लिए उम्मीद बाँधने लगती है. पत्नी जो कभी गुस्सा होती तो कभी प्यार जताती लेकिन मन में डर बनाये रखती थी. पिता जो बेटे के साहस और कर्तव्य पर गर्व से फुले नहीं समाते उनके माथे में भी अख़बारों के पन्नें से आई ख़बरें शिकन ले आती थी.

ऐसे ही एक रोज वो अपने घर आया था. बड़ी दिनों के बाद छुट्टियां मिली थी उसे. माँ और पत्नी के लिए साड़ियां लाया था, पिता के पसंद का वही सफ़ेद कुर्ता पैजामा भी याद था उसे. पूरा गाँव उसके स्वागत के लिए खड़ा था, आखिर उस गाँव का असली हीरो जो आया था. एक कंधे में माँ और पत्नी के प्यार और दूसरे कंधे में अपने दायित्व का बोझ उठाने के बाद भी उसके चेहरे में मुस्कान कायम थी.

छुट्टियां ख़त्म हो गयी, जाने का समय हो चुका था. माँ के आँखों के आँसू थम नहीं रहे थे, पत्नी अपनी भावनाएं छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, और पिता बेटे को समझाईश देकर अपने होने का दायित्व निभा रहे थे. बेटा जो माँ को वापस आने का अनजाना सा वादा किया जा रहा था, पत्नी को अपने होने और साथ बनाये रखने का हौसला देते हुए जा रहा था. जल्द ही एक लंबी छुट्टी लेकर वापस आने का वादा किया था उसने.

कुछ समय बाद 'वो' वापस आया. पूरा गाँव फिर से उसके स्वागत के लिए तैयार खड़ा था. लेकिन इस बार वह चलकर नहीं बल्कि लेटकर आया था. अकेले नहीं उसको लाने पूरी फ़ौज आई थी. वो लड़का जिसने अपना दायित्व निभाया था, उसकी माँ और पत्नी फिर से उसके आने पर रो रहे थे. पिता स्तब्ध खड़े थे. माहौल बिल्कुल ही शांत था. आखिर उस लड़के ने अपने लिए एक 'माँ' और चुना था. उस माँ की रक्षा को अपना दायित्व बनाया था उसने. उसी दायित्व को निभाते हुए वो चला गया.

उसके जाने से उस गाँव के बाहर कहीं कुछ नहीं बदला. बस एक माँ है जो अब दिन भर रोती है और अपने बेटे के तस्वीर को निहारती रहती है. एक पत्नी है जिस पर अपने माँ-पिता समान सास-ससुर के साथ साथ उसके शारीर में पल रहे एक और वीर योद्धा की ज़िम्मेदारी है. ना कोई मुआवजा है, ना कोई परिवार है, ना कोई सहारा है, है तो केवल दायित्व! और उस दायित्व को पूरा करने की शक्ति!



Saturday, 12 September 2020

चाणक्य "एक अमर व्यक्तित्व"

कौटिल्य अथवा 'चाणक्य' अथवा 'विष्णुगुप्त' (जन्म- अनुमानत: ईसा पूर्व 370, पंजाब; मृत्यु- अनुमानत: ईसा पूर्व 283, पाटलिपुत्र) सम्पूर्ण विश्व में एक महान राजनीतिज्ञ और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका व्यक्तिवाचक नाम 'विष्णुगुप्त', स्थानीय नाम 'चाणक्य' (चाणक्यवासी) और गोत्र नाम 'कौटिल्य' (कुटिल से) था। ये चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री थे। चाणक्य का नाम संभवत उनके गोत्र का नाम 'चणक', पिता के नाम 'चणक' अथवा स्थान का नाम 'चणक' का परिवर्तित रूप रहा होगा। चाणक्य नाम से प्रसिद्ध एक नीतिग्रन्थ 'चाणक्यनीति' भी प्रचलित है। तक्षशिला की प्रसिद्धि महान अर्थशास्त्री चाणक्य के कारण भी है, जो यहाँ प्राध्यापक थे और जिन्होंने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की नींव डाली। 'मुद्राराक्षस' में कहा गया है कि राजा नन्द ने भरे दरबार में चाणक्य को उसके उस पद से हटा दिया, जो उसे दरबार में दिया गया था। इस पर चाणक्य ने शपथ ली कि वह उसके परिवार तथा वंश को निर्मूल करके नन्द से बदला लेगा। 'बृहत्कथाकोश' के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम 'यशोमती' था।
        माना जाता है कि चाणक्य ने ईसा से 370 वर्ष पूर्व ऋषि चणक के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। वही उनके आरंभिक काल के गुरु थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चणक केवल उनके गुरु थे। चणक के ही शिष्य होने के नाते उनका नाम 'चाणक्य' पड़ा। उस समय का कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। इतिहासकारों ने प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी-अपनी धारणाएं बनाई। परंतु यह सर्वसम्मत है कि चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। तत्कालीन समय में सभी सूचनाएं व विधाएं धर्मग्रंथों के माध्यम से ही प्राप्त होती थीं। अत: धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन शिक्षा प्राप्त का एकमात्र साधन था। चाणक्य ने किशोरावस्था में ही उन ग्रंथों का सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया था।
उन्होंने 'अर्थशास्त्र' नामक एक ग्रन्थ की रचना की, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर भली भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' मौर्य काल के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप को सर्वागं देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र से धार्मिक जीवन पर भी काफ़ी प्रकाश पड़ता है। उस समय बहुत से देवताओं तथा देवियों की पूजा होती थी। न केवल बड़े देवता-देवी अपितु यक्ष, गन्धर्व, पर्वत, नदी, वृक्ष, अग्नि, पक्षी, सर्प, गाय आदि की भी पूजा होती थी। महामारी, पशुरोग, भूत, अग्नि, बाढ़, सूखा, अकाल आदि से बचने के लिए भी बहुत से धार्मिक कृत्य किये जाते थे। अनेक उत्सव, जादू टोने आदि का भी प्रचार था। अर्थशास्त्र राजनीति का उत्कृट ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती राजधर्म को प्रभावित किया। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में वार्ता (अर्थशास्त्र) तथा दण्डनीति (राज्यशासन) के साथ आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र) तथा त्रयी (वैदिक ग्रन्थों) पर भी काफ़ी बल दिया है। अर्थशास्त्र के अनुसार यह राज्य का धर्म है कि वह देखे कि प्रजा वर्णाश्रम धर्म का 'उचित पालन करती है कि नहीं।राजा को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करती यह पुस्तक चाणक्य की एक अमर कृति है।।
    

Sunday, 6 September 2020

नारी सहमति

भले ही आज हिंदुस्तान मंगल तक पहुँच गया हो लेकिन आज भी हिंदुस्तान का पुरुष प्रधान देश संकीर्णताओं से ग्रस्त है। खासकर के महिलाओं के मामलें में। हर विकसित देश विकास को प्राप्त करने के लिए महिलाओं और पुरुषों को कंधे से कन्धा मिलाकर चलने की बात करता है। लेकिन ये सुझाव शायद ही भारत जैसे देश में अपनाए जा सके। यहाँ तो प्राचीन काल से ही स्त्रियों को पुरुषों से कमतर ही समझा गया है जो आज भी विद्यमान है।

हमारे देश के संविधान को बने हुए ६७ साल हो चुके है जो सभी देशवासियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता देने का वचन तो देता है लेकिन स्त्रियों के मामले में ये संविधान केवल एक पुस्तक मात्र बन कर रह गया है। यूँ तो इसमें स्त्रियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता पुरुषों के बराबर दी गयी है परन्तु वास्तविकता क्या है इससे सभी अवगत है।

यहाँ स्त्रियाँ सिर्फ वैवाहिक जीवन का सुख भोगने का एक साधन मात्र बन कर रह गयी है। उनका बस एक ही कर्त्तव्य निर्धारित किया गया है - जीवन पर्यन्त पति और उसके परिवारजनों की सेवा सुशुश्रा करना। जन्म से ही उन्हें स्वयं निर्णय लेने के योग्य समझा ही नहीं जाता। उनका हर निर्णय उनके माता-पिता व भाई-बन्धु ही लेते आये है और बड़े होने के बाद अगर वो किसी मुद्दे पर अपने विचार भी प्रकट करना चाहे भले ही वो मुद्दा उनके खुद के जीवन से सम्बंधित ही क्यों न हो तो भी तुममें अभी समझ नहीं है या तुमने हमसे ज्यादा दुनियां नहीं देखी है इत्यादि कह कर टाल दिया जाता है। जैसे कि उनके विचारों, उनकी इच्छाओं, उनकी सहमती की कोई महत्ता ही न हो। वे यह भी समझने की कोशिश नहीं करते कि उनकी यह ज्यादती एक दिन उस स्त्री को ऐसा बना देगी की वह भविष्य में फिर कभी अपने पैरों पर नहीं खड़ी हो पायेगी, या तो वह अपनी इच्छा शक्ति को हमेशा के लिए खो देगी या फिर वो कोई ऐसा कदम उठा सकती है जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

न जाने कब तक ये पुरुष प्रधान देश नारी को अबला होने पर मजबूर करता रहेगा। शायद उसे भी इस बात का भय है कि अगर नारी को स्वतंत्र होने का अवसर मिल गया तो पुरुष फिर किस पर शासन करेगा। कौन होगा जो उसकी बातों को बिना कोई तर्क किये हुए जस का तस स्वीकार कर लेगा।

नए साल की शुभकामनाएं!

नए साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएं! जाँते के गीतों को, बैलों...