Harshit
Sunday, 31 December 2023
नए साल की शुभकामनाएं!
Saturday, 14 October 2023
रेत की नाव
Wednesday, 9 August 2023
आखिर जिम्मेदार कौन?
Sunday, 17 July 2022
इस जलती कलम से क्या लिखूं
Thursday, 31 March 2022
मेरी अधूरी कहानी
Friday, 18 March 2022
भारतीय संस्कृति में आधुनिकता का बढ़ता प्रभाव
भारत दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओ में से एक है. हम सभी उस देश से आते हैं जो प्राचीन समय में विश्व गुरु के नाम से जाना जाता था.यह धरती आदि शंकराचार्य,महर्षि वाल्मीकि ,गुरु वशिस्ठ ,कल्हण,शुक्राचार्य,कौटिल्य एवं कलाम जैसे महापुरुषों की धरती रही है. हम सभी को अपनी प्राचीन सभ्यता पर गर्व है एवं इसके के इश्वर का धन्यवाद् है है उन्होंने हमें इस पावन धरा पर जन्म लेने का अवसर प्रदान किया.
इन सब से अलग विश्व के आधुनिकीकरण
के कारण हम आज ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहाँ अपनी संस्कृति से जुड़े होने पर व्यक्ति
को अनपढ़ अथवा जाहिल समझा जाता है. अपने आप को विदेशी कपड़ो,विदेशी फिल्मों,विदेशी खाने से लोगों ने
इसप्रकार जोड़ लिया है की आज उन्हें अपने देश की चीजें केवल एक वस्तु भर नज़र आती है.
वे कभी भी अपने आप को इससे जोड़कर देखना नहीं चाहते.
हमारे
प्राचीन ग्रंथो में बताया गया है की कोई भी पेड़ अपनी जड़ से अलग होकर ज्यादा समय तक
हरा भरा नहीं रह सकता परन्तु पता नहीं हम सभी क्यों अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे
हैं.
हम सभी संस्कृतियों का सम्मान करते है परन्तु
अपनी संस्कृति से जुड़कर रहना चाहते हैं. हम विश्व के लोगों के कदम से कदम मिलाकर
अंग्रेजी बोलना जानते हैं परन्तु संस्कृत का सम्मान हमारे मन में तनिक भी कम नहीं
हुआ है. अंग्रेजी फिल्में हमें रोमांचित करती हैं परन्तु राम तेरी गंगा मैली,गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो,बागवान,मोहब्बतें
जैसी फिल्में हमारी नाट्यशाला की पहचान है. हम अंग्रेजी में लिखी पुस्तकें पढ़ते
हैं परन्तु कल्हण,कालिदास
अथवा तुलसीदास की रामायण,गीता,मधुशाला,
रश्मिरथी जैसी पुस्तकें हमें हमारा दर्पण लगती है.
भारतीय
धार्मिक मान्यताओं में प्रकृति को वंदनीय माना गया है, मगर आधुनिक विकास व
अनियंत्रित निर्माण कार्यों की जद्दोजहद में पर्यावरण संरक्षण की धज्जियां उड़ रही
हैं। हमारी संस्कृति में मुकद्दस रहे परंपरागत पेयजल स्रोत, पवित्र
नदियां तथा कई प्राकृतिक संसाधनों का आधुनिक विकास के नाम पर दोहन हो रहा है।
पारंपरिक ज्ञान का अभाव होने से प्रकृति संरक्षण के प्रति आवाम का नजरिया बदल चुका
है। पर्यावरण की पैरवी व चिंता के सरोकार सिर्फ नाममात्र ही रह गए हैं। लेकिन आज
पाश्चात्य संस्कृति के खुमार में जहां भारतीय संस्कार व कई परंपराएं उपेक्षित हो
रही हैं, वहीं पश्चिमी देशों के लोग भारत की समृद्ध संस्कृति
से जुड़ी कई चीजों व संस्कारों को अपने आचरण में शामिल कर रहे हैं। पिछले वर्ष
कोरोना काल में विश्व के कई देशों ने हमारी धार्मिक संस्कृति से जुड़ी पूजा पद्धति,
हवन, यज्ञ, योग, अध्यात्म व आयुर्वेद आदि चीजों को अपनी जीवनशैली में अपनाकर भारतीय दर्शन
के प्रति गहरी आस्था दिखाई।
इसीलिए
वर्तमान में दुनिया के कई देशों का भारतीय संस्कृति की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है, लेकिन हमारे देश में वेलेंटाइन डे, फादर्स डे,
मदर्स डे जैसे विदेशी दिवस मनाने की रिवायत बढ़ रही है। साथ ही
वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम का प्रचलन भी बढ़ रहा है। ये चीजें
हमारी तहजीब का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि पाश्चात्य संस्कृति
का अंधानुकरण है। समाज में बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं,
संगीन अपराधों में इजाफा, नस्लभेद, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, बॉलीवुड में
अश्लीलता व समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते इसी पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व
विकृत मानसिकता की देन है। सामाजिक संस्कारों को दूषित करने वाली इन चीजों को
आधुनिकता नहीं कहा जा सकता। बहरहाल इन तमाम बुराइयों के उन्मूलन व सशक्त समाज के
निर्माण के लिए अपने पुरखों की विरासत सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार, अध्यात्म व संयम का संदेश देने वाले उन
आदर्श संस्कारों व नैतिक मूल्यों को अपनाने की जरूरत है जिनके ध्वजवाहक हमारे
ऋषि-मुनि तथा चाणक्य व स्वामी विवेकानंद जैसे विद्वान प्रबल समर्थक व प्रखर आवाज
थे। उन मूल सिद्धांतों के दम पर ‘विश्व गुरू’ भारत दुनिया का नेतृत्व करता था।
भारत की प्राचीन संस्कृति में शक्ति व शांति का संदेश तथा शस्त्र व शास्त्र दोनों
पूजनीय रहे हैं। अतः आधुनिकता, टेक्नोलॉजी व इस डिजिटल युग
में लुप्तप्राय हो रही भारत के गौरव की अतीत से चली आ रही शाश्वत ज्ञान परंपरा व
संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन होना चाहिए ताकि देश की भावी पीढि़यां भारत के
प्राचीन वैभव से अवगत रह सकें।
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Saturday, 1 January 2022
नववर्ष में स्वयं से किये वादे
नए साल की शुभकामनाएं!
नए साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएं! जाँते के गीतों को, बैलों...
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उतर सकता था लहरों के साथ, रक्षा की रस्सी कफ़न हो गयी। पंखों पे लग गये पहरे सफ़र में, उड़ने की आशा दफ़न हो गयी। यही नाव मन था आशा हिलोरें बाँ...
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ना जाने कौन है वो लोग जो कहते है, We are proud to be Indians? ना जाने कैसे सो जाते है वो ना मर्द, जो कभी जाति तो कभी धर्म तो कभी बदले की आग ...
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नया साल दस्तक दे चुका है । छोटे कदमों से बेहतरी की ओर बढे। बदलाव की ओर बढ़े । छोटी-छोटी खुशियों को जीना सीखें। नया साल दस्तक देने को है।आपने...