Sunday, 31 December 2023

नए साल की शुभकामनाएं!

नए साल की शुभकामनाएं!
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को,
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को,
नए साल की शुभकामनाएं!

जाँते के गीतों को, बैलों की चाल को,
करघे को कोल्हू को, मछुओं के जाल को,
नए साल की शुभकामनाएं!

इस पकती रोटी को, बच्चों के शोर को,
चौंके की गुनगुन को, चूल्हे की भोर को,
नए साल की शुभकामनाएं!

वीराने जंगल को, तारों को, रात को,
ठंडी में अलाव के आगे घर की बात को,
नए साल की शुभकामनाएं!

इस चलती आंधी में हर बिखरे बाल को,
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को,
नए साल की शुभकामनाएं!

कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को,
हर नन्ही याद को, हर छोटी भूल को,
नए साल की शुभकामनाएं!

उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे,
उनको जो अपने गमों में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएं.

Saturday, 14 October 2023

रेत की नाव

उतर सकता था लहरों के साथ,
रक्षा की रस्सी कफ़न हो गयी।
पंखों पे लग गये पहरे सफ़र में,
उड़ने की आशा दफ़न हो गयी।

यही नाव मन था आशा हिलोरें
बाँधा जो मन को लहर खो गये
रेतों औ कंकड़ पे जड़ हो  पड़ा
जाना जिधर  था शहर खो गये

किसको सुनायेंगे ये दास्ताँ कि
अपने ही ज़िद में पड़े रह गये।
समय ले गया ज़िंदगानी चुराकर
रेत के नाव सा हम खड़े रह गये।

Wednesday, 9 August 2023

आखिर जिम्मेदार कौन?

ना जाने कौन है वो लोग जो कहते है,
We are proud to be Indians?
ना जाने कैसे सो जाते है वो ना मर्द,
जो कभी जाति तो कभी धर्म तो कभी बदले की आग में औरतों की आत्मा का चीरहरण कर जाते है?

जिन लोगों की सुरक्षा के लिए ये सरकार बनाई गई
अपने मतलब के लिए ना जाने क्यों,
ये गूंगी, बहरी और अंधी बन जाती है?

जिस देश ने औरतों को देवी का दर्जा दिया,
वहां अब कोई औरत बिना डर से अकेली नहीं निकल सकती..
इस डर से कि ना जाने कब कौन सा दरिंदा उसका शिकार कर जाएं?

जो बेटी बनकर घर सजाती, बहु बनकर रिश्ते, पत्नी बनकर किसी की जिंदगी.. जो मां बनकर एक नई जान इस दुनिया में लाती...
ना जाने क्यूँ? हर गाली उससे ही शुरू, उसपे ही खत्म और हर कोई उसे ही चरित्रहीन कह जाता है।

बदले की आग, चरित्र की परीक्षा, तानों का प्रहार,
ना जाने क्यूँ, हर बार औरतों को ही शिकार बनाया जाता है?

काश ये दुनिया सिर्फ मर्दों की होती,
यहां औरतों का अक्स भी ना होता!
तब शायद इन दरिंदो को औरतों की अहमियत की कद्र होती..!

हर जगह क्राइम, पर मीडिया तो अंधी भक्त बन बैठी है।
जिन्हें हैदर, सीमा और लव जिहाद दिखाकर
लोगों के अंदर नफरत का कीड़ा बोने से फुर्सत ही नहीं।

देश ने चंद्रयान 3 क्या लांच किया..
हर कोई कहने लगा, हमें गर्व है भारत पर!
वहीं मणिपुर में इतना कुछ हो गया,
खबर तक नहीं लगी किसी को..!
लगता है ये तो जैसे शुरुआत है, आज वहां हुआ है,
कल कहीं और हो जाएगा...
क्या ही फर्क पड़ेगा किसी को और सरकार को...
उन्हें तो बस अपनी कुर्सी बचानी है।

हैवानियत हद पार कर,
इंसानियत का सिर शर्म से झुक गया
भारत मां ने खामोशी से आंसू बहाएं,
पर वो खामोशी कितना दर्द बयां कर गयी...

आखिर जिम्मेदार कौन..?
____

जब मैंने मणिपुर के बारे में सुना था न, मेरे दिमाग में तस्लीमा नाजरीन की नॉवेल "लज्जा" उतर आया था। आज जो मणिपुर में हो रहा है, इस नॉवेल के टाइटल को पूरी तरह से जस्टिफाई करता है। लज्जा भी मासूमों का दर्द बयां करती है। और मणिपुर भी एक दर्द बयां कर रहा है। ये दंगे फसाद, नफरत की आग, बदला... वजह कुछ भी हो, पर लोग समझते क्यों नहीं कि शिकार एक मासूम ही होता है? सब कुछ सहना आम नागरिक को ही होता है।

मैंने वो वायरल वीडियो देखी नहीं है और ना ही देखने की हिम्मत है। पर सच में, मुझे रात में सपने तक डराने लग गए है। सरकार पे तो अब कोई भरोसा रहा नहीं.. और उनसे इंसाफ की उम्मीद लगाना मात्र बेवकूफी है। 

हम यहां सही सलामत है, पर वो लोग अपने ही वतन, मिट्टी में, बेघरों की तरह कैम्प में रह रहे है। आंखों के सामने अपनों, घर को जलते देखना... जिस दर्द में वो लोग इस वक़्त है, हम वो सोच भी नहीं सकते। 

पर कहते है कि दुआओं में बहुत ताकत होती है। इसलिए मणिपुर के लिए जितना हो सके दुआ करें..! 
घाव भरने में वक़्त तो बहुत लगेगा, पर मणिपुर में शांति जल्द से जल्द आ जाएं बस यही प्राथना है..!

Sunday, 17 July 2022

इस जलती कलम से क्या लिखूं

आपने कभी बहती हुई नदी को ध्यान से देखा है। बड़ी तेजी के साथ अपने उद्गम स्थल से बहना शुरू करती है। शुरुआत से ही उसका लक्ष्य अपनी मंजिल (सागर) को प्राप्त करना होता है।

रास्ते में हजारों बाधाएं आने पर भी वह लगातार बहती रहती है। भले ही कुछ जगहों पर उसकी रफ़्तार कम हो जाए,लेकिन वह रूकती कभी नहीं है। अपनी सुरीली आवाज के साथ बहती हुई नदी अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ती रहती है…और कैसे भी हो अपना लक्ष्य प्राप्त करके ही रहती है।
सोचो यदि नदी बीच में ही बहना छोड़ दे तो क्या होगा?……..उसका पानी ठहर जायेगा और वह कुछ ही दिनों में सूख कर नष्ट हो जाएगी।

दोस्तों! यही हमारी Life में होता है। यदि सफल होने के लिए आप कोई लक्ष्य तय करते हैं तो उस लक्ष्य तक पहुंचने की पहली शर्त यह है कि आपको लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना है।…..यदि कहीं रुके तो असफलता निश्चित है।

अपने मनपसन्द लक्ष्य तक पहुंचना आसान कार्य नहीं होता।…….यदि आसान होता तो आज दुनिया के सभी लोग सफल होते। सफलता के रास्ते में बहुत सी बाधाएं सामने मुँह फैलाये खड़ी मिलती हैं। यह बाधाएं हमें रोकने की पूरी कोशिश करती हैं।
समय हमेशा चलता रहता है इसलिए दुनिया का हर इंसान समय का गुलाम है।……..हवा हमेशा चलती रहती है, कभी कम रफ्तार से तो कभी तेजी से, लेकिन रूकती कभी नहीं है इसलिए दुनिया के किसी भी जीव का जीवन हवा के बिना संभव ही नहीं है।
विवेकानंद जी ने सही ही कहा है, “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको।”

सोचो कि जो लोग अपना लक्ष्य केवल इसलिए छोड़ देते हैं कि “इसके लिए चलना बहुत पड़ेगा”, इससे ज्यादा बड़ी असफलता कोई नहीं हो सकती…….क्योंकि सफलता व असफलता तो बाद की बात है, खुद को बिना प्रयास के असफलता की ओर धकेल देना, इससे बुरा कुछ हो ही नहीं सकता।
तो देर किस बात की है ! आज और अभी से कमर कस लो और लक्ष्य तय करके उसकी ओर चलना शुरू कर दो। चलते रहे और बीच रास्ते में आयी बाधाओं को सीना तान कर पार करते रहे तो सफलता आपके कदमों में होगी।

Thursday, 31 March 2022

मेरी अधूरी कहानी

ढलते दिन का संगीत सुनकर,
रखता हूँ राख, बुझते जीवन से चुनकर,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ,
एक अधूरी सी कहानी है, जो मनभर गुनगुनाता हूँ!!

तारों में लिखी कहानी चुनकर,
खिलता हूँ एक आखरी निशानी बनकर,
रेत के घरौंदे सा रचता मिटाता हूँ,
एक अधूरी सी कहानी है, जो मनभर गुनगुनाता हूँ!!

फूलों से टपकी लोरियाँ सुनकर,
रखता हूँ नींद से सपने चुनकर,
परियों के किस्सों सा जीवन गढ़ता जाता हूँ,
एक अधूरी सी कहानी है, जो मनभर गुनगुनाता हूँ!!

पुरवाई के झोंकों से झूमकर,
रखता हूँ मौजों को सहेज कर,
पानी की बूँदों सा बहता जाता हूँ,
एक अधूरी सी कहानी है जो मनभर गुनगुनाता हूँ!!

रात के अंधेरों से लिपट कर,
रखता हूँ तारों को समेट कर,
अमावस के चाँद सा खिलता जाता हूँ,
एक अधूरी सी कहानी है,जो मनभर गुनगुनाता हूँ!!!

Friday, 18 March 2022

भारतीय संस्कृति में आधुनिकता का बढ़ता प्रभाव

 भारत दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओ में से एक है. हम सभी उस देश से आते हैं जो प्राचीन समय में विश्व गुरु के नाम से जाना जाता था.यह धरती आदि शंकराचार्य,महर्षि वाल्मीकि ,गुरु वशिस्ठ ,कल्हण,शुक्राचार्य,कौटिल्य एवं कलाम जैसे महापुरुषों की धरती रही है. हम सभी को अपनी प्राचीन सभ्यता पर गर्व है एवं इसके के इश्वर का धन्यवाद् है है उन्होंने हमें इस पावन धरा पर जन्म लेने का अवसर प्रदान किया.

               इन सब से अलग विश्व के आधुनिकीकरण के कारण हम आज ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहाँ अपनी संस्कृति से जुड़े होने पर व्यक्ति को अनपढ़ अथवा जाहिल समझा जाता है. अपने आप को विदेशी कपड़ो,विदेशी फिल्मों,विदेशी खाने से लोगों ने इसप्रकार जोड़ लिया है की आज उन्हें अपने देश की चीजें केवल एक वस्तु भर नज़र आती है. वे कभी भी अपने आप को इससे जोड़कर देखना नहीं चाहते.

हमारे प्राचीन ग्रंथो में बताया गया है की कोई भी पेड़ अपनी जड़ से अलग होकर ज्यादा समय तक हरा भरा नहीं रह सकता परन्तु पता नहीं हम सभी क्यों अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं.

 हम सभी संस्कृतियों का सम्मान करते है परन्तु अपनी संस्कृति से जुड़कर रहना चाहते हैं. हम विश्व के लोगों के कदम से कदम मिलाकर अंग्रेजी बोलना जानते हैं परन्तु संस्कृत का सम्मान हमारे मन में तनिक भी कम नहीं हुआ है. अंग्रेजी फिल्में हमें रोमांचित करती हैं परन्तु राम तेरी गंगा मैली,गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो,बागवान,मोहब्बतें जैसी फिल्में हमारी नाट्यशाला की पहचान है. हम अंग्रेजी में लिखी पुस्तकें पढ़ते हैं परन्तु कल्हण,कालिदास अथवा तुलसीदास की रामायण,गीता,मधुशाला, रश्मिरथी जैसी पुस्तकें हमें हमारा दर्पण लगती है.

भारतीय धार्मिक मान्यताओं में प्रकृति को वंदनीय माना गया है, मगर आधुनिक विकास व अनियंत्रित निर्माण कार्यों की जद्दोजहद में पर्यावरण संरक्षण की धज्जियां उड़ रही हैं। हमारी संस्कृति में मुकद्दस रहे परंपरागत पेयजल स्रोत, पवित्र नदियां तथा कई प्राकृतिक संसाधनों का आधुनिक विकास के नाम पर दोहन हो रहा है। पारंपरिक ज्ञान का अभाव होने से प्रकृति संरक्षण के प्रति आवाम का नजरिया बदल चुका है। पर्यावरण की पैरवी व चिंता के सरोकार सिर्फ नाममात्र ही रह गए हैं। लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति के खुमार में जहां भारतीय संस्कार व कई परंपराएं उपेक्षित हो रही हैं, वहीं पश्चिमी देशों के लोग भारत की समृद्ध संस्कृति से जुड़ी कई चीजों व संस्कारों को अपने आचरण में शामिल कर रहे हैं। पिछले वर्ष कोरोना काल में विश्व के कई देशों ने हमारी धार्मिक संस्कृति से जुड़ी पूजा पद्धति, हवन, यज्ञ, योग, अध्यात्म व आयुर्वेद आदि चीजों को अपनी जीवनशैली में अपनाकर भारतीय दर्शन के प्रति गहरी आस्था दिखाई।

इसीलिए वर्तमान में दुनिया के कई देशों का भारतीय संस्कृति की तरफ  आकर्षण बढ़ रहा है, लेकिन हमारे देश में वेलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे जैसे विदेशी दिवस मनाने की रिवायत बढ़ रही है। साथ ही वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम का प्रचलन भी बढ़ रहा है। ये चीजें हमारी तहजीब का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण है। समाज में बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं, संगीन अपराधों में इजाफा, नस्लभेद, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, बॉलीवुड में अश्लीलता व समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते इसी पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व विकृत मानसिकता की देन है। सामाजिक संस्कारों को दूषित करने वाली इन चीजों को आधुनिकता नहीं कहा जा सकता। बहरहाल इन तमाम बुराइयों के उन्मूलन व सशक्त समाज के निर्माण के लिए अपने पुरखों की विरासत सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार, अध्यात्म व संयम का संदेश देने वाले उन आदर्श संस्कारों व नैतिक मूल्यों को अपनाने की जरूरत है जिनके ध्वजवाहक हमारे ऋषि-मुनि तथा चाणक्य व स्वामी विवेकानंद जैसे विद्वान प्रबल समर्थक व प्रखर आवाज थे। उन मूल सिद्धांतों के दम पर ‘विश्व गुरू’ भारत दुनिया का नेतृत्व करता था। भारत की प्राचीन संस्कृति में शक्ति व शांति का संदेश तथा शस्त्र व शास्त्र दोनों पूजनीय रहे हैं। अतः आधुनिकता, टेक्नोलॉजी व इस डिजिटल युग में लुप्तप्राय हो रही भारत के गौरव की अतीत से चली आ रही शाश्वत ज्ञान परंपरा व संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन होना चाहिए ताकि देश की भावी पीढि़यां भारत के प्राचीन वैभव से अवगत रह सकें।



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Saturday, 1 January 2022

नववर्ष में स्वयं से किये वादे

नया साल दस्तक दे चुका है ।
छोटे कदमों से बेहतरी की ओर बढे।
बदलाव की ओर बढ़े ।
छोटी-छोटी खुशियों को जीना सीखें।
नया साल दस्तक देने को है।आपने भी कई संकल्प लिये होंगे या फिर उन पर विचार कर रहे होंगे।

लेकिन भारी भरकम वादों और इरादों के फेर में छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज ना करें।

आज छोटी छोटी और सरल शुरुआत करें ।जो इस वर्ष आदत बन जाए तो जिंदगी बेहतर मोर्चे पर आगे बढ़ेगी।

1- बीते कुछ महीनों में करोना की आपदा के चलते  जिंदगी ने हमें फिर समझाया है कि- छोटी-छोटी खुशियों को जीना कितना जरूरी है।
सेहत सहेजना हो या सकून से अपनी झोली भरना हो ऐसे छोटे छोटे कदम ही बेहतरीन बदलावों की ओर ले जाते हैं।

2 - खुलकर हंसे। जरा ठहरो तो सही,बताओ हंसी कहां गुम हो गई है।इस साल यह तय करने की चेहरे की सुंदरता और खुशियों के इजहार कि इस साथी को फिर जिंदगी में जोड़ेंगे।

जी भर से मुस्कुराएंगे जिंदगी की सबसे खूबसूरत नेमत को घर हो या बाहर अपनी पार्टी का हिस्सा बनाएंगे।
हंसी खुशी हर हालत में का सामना करेंगे। तकलीफ भरे समय में भी हंसने का बहाना तलाश लेगे।
खुद भी मुस्कुराहटों का स्वागत करेंगे और दूसरों को भी इस जिंदादिली से जोड़ेंगे।

3 -विनम्र व्यवहार आचार को आपनाएगे -विनम्रता अपको अपने पराए दोनों जगह  के दिलो में जगह दिला सकती है।
विनम्र रहे यह विनम्रता आपको घर में नहीं ऑफिस में भी सबका चहेता बना सकता है।

दिखावे से भरी इस दुनिया में विनम्रता और सादगी भरा व्यवहार आप की शख्सियत का बड़ा हिस्सा बन सकता है और खासियत भी।

4 - जिंदगी का हर पल कीमती है।
तो तय करें कि भविष्य की चिंता छोड़ देंगे।

5 - किसी के मन की सुने- हम अपनी ही नहीं सुने किसी के मन की भी सुने।
संवाद की कमी रिश्तो में दूरी ही नहीं ला रही बल्कि सोशल नेट वर्क को भी बदल रही है।
अब के बरस तय करें कि जब भी जहां भी आपसे कोई कुछ कहना चाहे, आप उसकी मन की बात जरूर सुने।

6 - इस साल गैजेट्स के माया जाल से थोड़ा सा बाहर आये। स्मार्टफोन या सोशल मीडिया खुद से छूट जाने के लिए नहीं है तय करे कि  दिन भर में स्क्रीन क्रॉल करते रहने के बजाय नियमित समय में सोशल मीडिया के प्लेटफार्म  को देगे।

7 - सेहत से स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं को ले कर  बेहतर कदम उठा सकते हैं ।
नियमित व्यायाम करें खानपान और मेडिकल प्राथमिकता  को महत्व दे। 
यह सात वादे अपने आप से करें 
चलिये अब नए वर्ष में प्रवेश करते हैं----

नए साल की शुभकामनाएं!

नए साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएं! जाँते के गीतों को, बैलों...